कहानीलघुकथा
#फर्ज
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सुनिए तो ये लिस्ट लेते जाना किराने के सामान की...बबिता ने राजेश को एक लिस्ट देते हुए कहा
पापा मेरी चाँकलेट....बेटा बोला...
पापा मेरे लिए चिप्स....बडी़ बेटी बर्षा सर हिलाते हुए बोली .... साथ में रह रही भतीजी नेहा देख कर सिर्फ मुस्कुरा रही थी....
उसके मन में भी कुछ चल रहा था मैं उसकी भावना को समझ चुका था।
हां......बेटा ....
मगर राजेश के दिमाग में तो सुबह फोन पर उधारी वाले से हुई बातचीत के कहे शब्द गूंज रहे थे...
राजेश बाबू ....इस बार मेरा पुरी उधारी की रकम मिल जाना ....
लॉकडाउन में पूरा धंधा चौपट है .... आपके अच्छे व्यवहार पर सिर्फ उधारी दिया था , परन्तु...
तभी बबिता ....राजेश को माँ की दवा के बारे में याद ...
जी मां जी ....पहले ही फोन कर बताई .....
उफ्फ.... ये बीमारी कोरोना ....कमर तोड दी हम प्राइवेट स्कूल ....
उसपर ये लॉकडाउन ......हरबार बढ जाता है ....
अब पैसै भी नहीं बचे है कैसे ......
माँ की दवाई.... किरानेवाले का महीने के राशन के पैसे... मकान बनाने का उधारी ....दूधवाले का पैसा....
क्या दूं कहाँ ...... उपर से चार महीने इ०एम०आई .........सोचा था बबिता और बच्चों को गाँव छोड आऊँ राशन के खर्च कम आएगी .... इससे अब इ०एम०आई .... परन्तु लॉकडाउन के कारण बाहर से दोनो भैया, भतीजी और भाभी आने वाली थी..........
ऐसी अनेकों परेशानियों को सोचते हुए राजेश राशन लेने बाहर निकल पडा ....अभी कुछ कदम चला था की बबिता भागे भागे आ... उसकी पुकारने की आवाज सुनाई दी ...
बबिता पसीना से लथपथ थी पर ...मुझे रोककर मास्क देते हुए बोली ...ये लीजिए ....
और ये भी लीजिए ....पर्स से पैसे निकाल कर देते हुए बोली ...
अरे इतने पैसे.... तुम्हारे पास ....कैसे ....हमारे पास तो हर महीने कुछ नही बचता तो ....
बबिता मुसकुराते हुए बोली - आपके स्कूल जाने के बाद मैं अपने स्कूल के बच्चों को पढा़कर जो फीस मिली उन्हीं से बचाए हुए हैं ....
कुछ और बच्चों को टयूशन देने लगी थी आपको नही बताया सोचा था कभी एमरजेंसी मे काम आएंगे .....
बच्चों के सामने नही देना चाहती थी .... ताकि बच्चों पर नकारात्मक सोच ना पडे।
इसलिए पीछे पीछे चली आई ....
तुम बिल्कुल मां की तरह मेरी हर परेशानियों को चेहरे पर से पढ लेती हो ....
हां ...मां ही तो हूं ....मगर तुम्हारी नही तुम्हारे बच्चों की ...
हां एक पत्नी का फर्ज निभा रही हूं, जैसे तुम हर मोड पर हर वक्त मेरे साथ मेरे हमकदम बनकर साथ रहते हो ...
आखिर हम जीवनसाथी जो है ...सुख दुख के ...
मुस्कुरा कर वो वापस चली गई ...वहीं भीगी हुई पलकों से राजेश भी हंसते हुए उसे देख रहा था...
@©✍️ राजेश कु० वर्मा' मृदुल'
कथा अच्छी है पर...लॉकडाउन,दूँ,हँसते, हाँ,माँ, मोड़,पढ़,आएँगे...सही कर लीजिएगा।
🙏🙏
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जी बिल्कुल आदरणीया