कवितागीत
अनजान राहों पर चलने लगे हम
घड़ी दो घड़ी को संभलने लगे हम
तेरे प्रेम का सिलसिला जो चला तो
किस्मत पर अपने मचलने लगे हम।
मगर क्या करें की मजबूरी देखो
किस्मत में प्रेम की यह दूरी देखो
बूँद जैसे टूटे धरती से टकराकर
वैसे ही हम अब बिखरने लगे हैं।
तेरा प्यार मेरा अब इबादत हुआ है
जैसे किसी सपने ने मुझको छुआ है
सर सर हवाओं से डरने लगे हम
बिछड़ कर तुझसे तडपने लगे हम।
एक पल तेरे प्रेम को पाकर
निखर गये हम प्रेम में नहा कर
मगर सब तकदीर का खेल हुआ है
अब तेरी स्मृतियों का बस सिलसिला है।
बहुत अच्छा लिखा है मैम उम्दा
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया