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अनकहा दर्द - Comrade Pandit (Sahitya Arpan)

कवितागजल

अनकहा दर्द

  • 211
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मिरे कमरे में दरवाजा नही लगता
तुझे मेरा ये गम ज्यादा नही लगता

रहोगे तुम हमेशा साथ मेरे ही
मुझे पक्का तिरा वादा नही लगता

सँवरती हो खिडकी पर आकर तुम अब
मुझे तो नेक इरादा नही लगता

कितना भी देखूं तक्सीन नही होती
उसका ये चेहरा सादा नही लगता

दवाई ले रहा हूं एक जमाने से
मगर फिर भी कुछ फायदा नही लगता

दिलो के खेल में नाकाम है "पंडित"
तु इस शतरंज का प्यादा नही लगता
ComradePandit

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