कविताअन्य
शीर्षक: "पुरानी डायरी के बन्द पन्ने"
वो मेरी पुरानी डायरी के बंद पन्ने, आज पलटे तो तुम्हें उसमे पाया
तुम्हारा एहसास, तुम्हारी खुशबू, तुम्हारा साया..!
तुम ही तुम थे, फिर... क्या था?? जो मुझे नज़र नही आया..?
तुम्हारी बातें... तुम्हारी हँसी...वो तो रोज़ खनकती है कानों में, फिर क्या था जो मुझे याद नही आया...!👌
तुम्हारा लड़ना... लड़ कर रुठ जाना...रुठ कर फिर खुद ही मनाना
सब ही तो था.... फिर क्या था जो ये दिल लिख नही पाया..!
एक इश्क़- ऐ- जुनूँ था, जो सर तो चढ़ा, पर दिल तक नही आया..!
वो मेरी पुरानी डायरी के बंद पन्ने, आज पलटे तो तुम्हे उसमे पाया...
वो गुलाब जो तुम्हारे हाथों की छुवन लिये है
वो काले धागे में बंधा तुम्हारा नाम जिसे पहनाते वक़्त कहा था ये .. तुम्हारे लिये है..!
सब आँखो पर छाया, फिर क्या था .... जो मुझे नज़र नही आया
वो तुम्हारा मेरे लिए .. पागलपन...
वो कहना नही जीना अब तेरे बिन..
तुझ से किस्मत की डोर बँधी है टूटेंगी तो मर जायेंगे
मैं जीना चाहता हूँ जान अभी... इसलिए बस तुझे ही अपना बनायेगे...!
हर लफ्ज़ में था तुम्हारे, एक जुनून का साया
फिर क्या था जो मुझे ही नज़र नही आया....
वो मेरी डायरी के बंद पन्ने, आज पलटा तो तुम्हे उसमे पाया
वो सर्दी की मीठी सी धूप, वो गर्मी की रातें
जब किया करते थे, हम पहरों पहर बातें
तुम्हारी एक छींक पर.. मेरा तुम्हे डांटना
जैकेट अच्छे से पहना करो ... चेन लगाते हुए ये कहना....
सब एक पल में जैसे आँखो पर उभर आया
तुम्हे भी मैंने, खुद को डांटते हुये पाया...!
तू टाइम से खाना खाया कर.. न किया कर इंतज़ार मेरा....इस लाइन से वो मेरा गुस्सा, आँखो से पानी बन बाहर आया
तुम्हारे इस अंदाज़ का अंदाजा न आज तक ये दिल लगा पाया....!
तुम्हारा लड़ना... लड़ कर रुठ जाना .... रुठ कर फ़िर खुद ही मनाना...
सब ही तो था... फिर क्या था, जो दिल समझ नही पाया...
हाँ....वो सर्दी की धूप सा तुम्हारा प्यार....
जो दिल की दीवार पर, खुशनुमा एहसास बन कर तो छाया रहा पर कभी दिल तक नही आया...!
वही .... वही तुम्हारा प्यार जो हर पल तुम मुझे जताते तो रहे
पर कभी तुम्हे मुझ पर नही आया
वही प्यार जो मैंने अपनी वफ़ा की स्याही में, तुम्हे डूबा कर दिया
पर तुम्हारे बेवफाई के पन्नो पर वो कुछ लिख न पाया
हाँ... वही प्यार मुझे नज़र नही आया......
वो मेरी पुरानी डायरी के बंद पन्ने, आज पलटे तो तुम्हे उसमे पाया
तुम्हारा एहसास... तुम्हारी खुशबू, तुम्हारा साया....तुम ही तुम थे..
नही थे तो तुम्हारे वादे, तुम्हारी वफ़ा... और तुम्हारा सच्चा प्यार...जो मुझे नज़र नही आया...!
©✍🏻 पूनम बागड़िया "पुनीत"
( दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना
अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..!
हार्दिक आभार सर...!🙏🏻🙏🏻