कहानीसामाजिकउपन्यासहास्य व्यंग्य
“अभी तो लिखने बैठे है, हम देखना बेटा बहुत लम्बा लिखेंगे और ऐसा लिखेंगे की लोगो की आंखों में आंसू आजायेंगे”
हमने खुद से बात करते हुए पेन पेपर उठाया, एक लाइन ही लिखी थी कि डोर बेल बज गयीं। हम दरवाजे की तरफ बढ़े। दरवाजे के काँच वाले गोले में से झाँक कर देखा तो जिज्जी मतलब हमारी ननद दरवाजे पर अपना भरा - पूरा परिवार लिए खड़ी थी। हम तुरन्त से मुडे और फोन खोलकर डेट, टाइम देखा, फिर उंगलियों पर काउंट किया,
“राजीव का बर्थडे..... नही पिछले महीने ही गया, मैरिज एनिवर्सरी...... अभी 3 महीने बाकी है, राजीव की तनख्वाह, प्रमोशन...... दोनो कुछ दिन पहले हुआ है। फिर ये पलटन यहाँ कैसे आ पहुँची!!!!
हम अचरज में खड़े थे कि घण्टी फिर बजी। (दरअसल हम ही नही ये जिज्जी की आदत से भानु भी परेशान थे जब भी आती है हमारे लिए कुछ न कुछ मुसीबत तो अवश्य ही खड़ी करके जाती है)
“अब तो दरवाजा खोलना ही पड़ेगा। पहले डायरी छुपा देते है नही तो बच्चे हवाई जहाज बना कर उड़ा देंगे पूरी डायरी के पन्नों के”।
बोलकर हम डायरी लेकर अंदर भागे। तब तक डोर बेल बजने की झड़ी लग चुकी थी। हम खुद को ठीक करते हुए दरवाजा खोलने पहुँचे। जैसे ही दरवाजा खोला एक के बाद एक सब घर मे ऐसे घुसते चले गए। जैसे पिकनिक मनाने आये हो और बस में से पैसेंजर उतर रहे हो। सब लोगो ने अपनी अपनी जगह ले ली। हम कुछ पूछते उसके पहले जिज्जी हमे खींचकर कोने में ले गयी। और साडी के पल्ले से मगरमछ के आंसू पोछते हुए बोली।
"क्या बताऊँ शशि.... गैस खत्म होगयी सिलिंडर में घर मे कुछ खाने को नही बन पाया। भाई को फोन किया तो बोला कि मै शशि को फोन करके बोल देता हूँ वो सिलिंडर भिजवा देगी। हमने बोला शशि को क्यों कष्ट देना हम ही चले जाते है। तो हम आगये"।
तभी हमने दीदी के कंधे पर हाथ रखकर बोला जिज्जी आप परेशान मत होइए हम सिलिंडर भिजवा देते है। आप ले जॉइये। इतने में भानु भी आगये। मुझे इशारा करके पूछा
“क्या हुआ”?
मैंने भी इशारे में बोल दिया
“मालूम नही”,
भानु बोल पड़े
“ऐ जिज्जी क्या हुआ? परेशान क्यों हो”?
“क्या बताऊँ सिलिंडर खत्म होगया सुबह से एक कोर मुह में नही गया किसी के भी सोचा यहां आकर खाएंगे यँहा तो सवाल ही खत्म नही हो रहे है खाने को तो तब मिलेगा”।
फिर से कहते आंसू दिखाकर रोते हुए जिज्जी बोली। मैं मन ही मन सोच रही थी
“सुबह से एक कोर नही गया अभी कौन सा दोपहर हुई है सुबह के 8 बजे है बुरी फँसी शशि आज तू"
खैर रसोई घर मे घुस गए भानु को आवाज लगाई
“भानु रसोईघर में आकर धीरे से बोले जैसे ही दीदी ने बोला घर जा रही है मैं उल्टे पैर हो लिया ऑफिस से मुझे लगा ये सिलिंडर के चक्कर मे कोई बखेड़ा न खड़ा हो जाये इसीलिए गुपचुप - गुपचुप भानु को बोल ही रहे थे
“खाना बाहर से ऑर्डर कर देते है इतने लोगों का खाना नही बन पाएगा आज”
जिज्जी ने सुन लिया फिर दहाड़े मारकर रोते हुए बोली
“ तूने हमको गरीब समझा है क्या? बाहर से मंगाकर खाना होता तो कबका खा लिया होता! हम डाइबिटीज के शिकार है। तुम्हारे जिज्जा को हाई bp की दिक्कत है, बच्चो को बाहर का नही खिलाते, और हमारे सांस ससुर गौ है बिचारे सादा खाना खाते है”।
जिज्जी बोल रही थी और हम भूतकाल में घूम रहे थे।
“दो दिन पहले ही पार्टी में पूरा परिवार ठूंस ठूंस कर खा रहा था, पिज़्ज़ा, बर्गर, गुलाबजामुन, चाउमीन और भी पता नही क्या – क्या!! आज इनको घर का खाना खाना है”।
पर हम चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे थे।
“हमे मार डालने का इरादा है तुम लोगो का! नही खिलाना है तो बोल दो हम कुछ और इंतज़ाम कर लेंगे”
कहकर दीदी चलने को हुई, भानु पलटकर जवाब देने ही वाले थे कि हमने रोक दिया आवाज लगाकर बोले
“रुको जिज्जी हम बनाते है खाना आप लोग बैठो”।
कहकर हम रसोई में आ तो गए पर मन मे अग्नि मची हुई थी। एक तो कहानी लिखने के मूड का सत्यनाश हो चुका था। ऊपर से ये नाटक कम्पनी की दुकान घर मे खुल चुकी थी। मरती क्या न करती??? खाना बनाकर खिला दिया। उसके बाद ऐसे थके मन किया कि बेड पर लेट जाये। पर कँहा सुकून जीवन मे???? तभी फरमाइश आयी कि आइस क्रीम खानी है। चलो वो भी दे दी बर्तन साफ किये रसोई साफ करते करते शाम हो चली। भानु रसोई में आकर बोले
“शशि रात के खाने का इंतज़ाम कर लो ये लोग यहीं खाएंगे”।
यह सुनकर तो हम जैसे गिरने ही वाले ही थे कि इतने डोर बेल बजी। भानु ने दरवाजा खोला तो सिलिंडर वाला था, बोला
“मैडम आपका सिलिंडर ले आया हूँ”।
मेरी खुशी का ठिकाना न था। मन किया कि इस सिलिंडर वाले कि आरती उतारू नारियल फोडू। कसम से इतनी शांति उसके शब्दों से हमे मिली कि जैसे किसी ने अमृत घोल दिया हो। सुनते ही हम खुशी से उछल पड़े भानु ने सिलिंडर देकर जिज्जी को विदा किया। गयी तो गयी साथ मे दोपहर का बचा - खुचा खाना भी समेट ले गयी और ऊपर से बोलकर गयी
“खाना ठीक ठाक बना लेती है अगली बार फिर आएंगे”।
हम भी बत्तीसी दिखाकर रह गए। उन लोगो के जाते ही हम बेड पर बैठ गए। भानु हमारी दशा देखकर बोले शाम को बाहर खाते है। और इतना बोलकर हम दोनों जोर से हँस पड़े अपनी हालत पर-नेहा शर्मा
जिज्जी का आना तो वैसे ही भारी होता है.....खुद आईं सो आईं,पूरी पलटन भी साथ लाईं😅
जी अभी जिज्जी शुरू हुई है अभी बहुत से कारनामे होंगे 😂
स्वागत है..!। हम लोगों की फर्माइश पर.. अन्ततोगत्वा.. जिज्जी प्रकट ही हो गयीं..! 👌🙏
धन्यवाद आदरणीय