कविताअतुकांत कविता
मैं सहानुभूति नही दिखाती हूँ उनके साथ
जो कमजोर हैं सिर्फ हाथ पैरों से
मुझे हमदर्दी भी नही है उनके साथ जो चल देख नही सकते।
मुझे हमदर्दी और सहानुभूति उनसे ज्यादा होती है
जो अपंग हैं दिमाग से।
सोच जिनकी अपंगता है।
मुझे मालूम है शारीरिक रूप से कमजोर इंसान खुद को होंसला दे ही देगा
मंजिल भी वह पा ही लेगा जैसे तैसे आज नही तो कल
या फिर देरी से ही सही, क्योंकि कुछ भी ह्रदय तो उसका शुद्ध हो ही जाता है समाज की सच्चाई को देखकर,
पर उनका क्या जो सही सलामत होकर भी दिल पत्थर का बना बैठे हैं।
उनकी सोच में लगे जंग को साफ करने वालों के हाथ घिस जाते हैं।
पर फिर भी रहते हैं वो वैसे ही, उनका क्या
शायद उन अपंग लोगो से कमजोर तो वो लोग हैं, सहानुभूति की जरूरत उन्हें ज्यादा महसूस होती होगी।
इसलिये मैं हमेशा उन्ही को हमदर्दी दिखाती हूँ।
उन्ही से मेरी सहानुभूति है।
मैं जानती हूँ वो नही सुधरेंगे अंत समय तक उनकी सोच की अपंगता उन्हें जलाकर राख कर देगी एक दिन,
पर फिर भी मैं सहानुभूति उन्ही से रखती हूँ
क्योंकि मुझे उन शारीरिक रूप से कमजोर लोगों से सहानुभूति नही है।
मुझे उन पर विश्वास है पूरा विश्वास जीत लेंगे वो दुनिया को,
अपने दम पर, अपने शरीर के दम पर नही, होंसले के दम पर।
अब तुम्ही सोचो कि आखिर अपंग कौन है आखिर - नेहा शर्मा