कवितालयबद्ध कविता
माँ - मेरी ख्वाहिशें पूरा करती है,
सुबह वो बोझ लिए सबसे पहले उठती है....
बिना किसी शिकायत के काम वो हफ़्ते-महीने करती है..
सुकून में भी वो सबके बारे में सोचती है...
माँ ....मां की एक अलग दुनिया हुआ करती है...
जहाँ दर्द को दिखा नहीं सकती,
दुःख को सुना नहीं सकती,
बस दूसरों के लिए दुआ किया करती है...
माँ ....मां की एक अलग दुनिया हुआ करती है...
क़िस्मत है उनकी जिनकी माँ हुआ करती है,
हुए दर्द ,तो वो अहसास हुआ करती है,
पुचकारने की दवा नहीं मिलेगी कहीं और,
जो पुचकार के सब दर्दों को मिटा दे,वो माँ हुआ करती है।
किसी के लिए दुनियां,किसी के लिए जान हुआ करती है,
किसी के लिए ख़ुद के पहले पहचान हुआ करती है,
कोई लाख कितना भी शौक़ पूरा कर ले चीज़ों से,
उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं जिनके घर में मां हुआ करती है....
माँ ....मां की तो एक अलग ही दुनिया हुआ करती है...
✍️गौरव शुक्ला'अतुल'