कवितागजल
आयोजन - 27 फरवरी 2021
विषय - शब्दाक्षरी (काजल)
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[ रचना ]
गज़ल
ये काली नैयना मदहोश शाम लगती है
अंधेरी रात में भी खिली चांद लगती है
नैयनो की पंखुडियाँ गुलाब लगती हैं
कजरारी तेरी नयना बेहिसाब लगती हैं
ये काजली नैयना हरसिंगार लगती है
बलखाती तेरी नैयना महताब लगती है
ये नशीली नैयना शराब ऐ जाम लगती है
होठों से पिये बिना ही नशा आम लगती है
जिक्र करूँ क्या इन नशीली नयनों का
आशिकों को महफ़िले -ऐ-शाम लगती है
नैयनो में काजल,माथे पे सुंदर सी बिंदिया
होठों की लाली, प्रेमियों की जान लगती है
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@©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)
📲 7979718193
बहुत सुंदर रचना
बहुत-बहुत आभार सादर धन्यवाद।