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"काली नैयना मदहोश शाम लगती है" - Rajesh Kr. verma Mridul (Sahitya Arpan)

कवितागजल

"काली नैयना मदहोश शाम लगती है"

  • 201
  • 4 Min Read

आयोजन - 27 फरवरी 2021
विषय - शब्दाक्षरी (काजल)
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[ रचना ]

गज़ल
ये काली नैयना मदहोश शाम लगती है
अंधेरी रात में भी खिली चांद लगती है

नैयनो की पंखुडियाँ गुलाब लगती हैं
कजरारी तेरी नयना बेहिसाब लगती हैं

ये काजली नैयना हरसिंगार लगती है
बलखाती तेरी नैयना महताब लगती है

ये नशीली नैयना शराब ऐ जाम लगती है
होठों से पिये बिना ही नशा आम लगती है

जिक्र करूँ क्या इन नशीली नयनों का
आशिकों को महफ़िले -ऐ-शाम लगती है

नैयनो में काजल,माथे पे सुंदर सी बिंदिया
होठों की लाली, प्रेमियों की जान लगती है
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@©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)
📲 7979718193

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Babita Kumari

Babita Kumari 3 years ago

👌👌👏👏✍✍

Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

धन्यवाद महोदया

Babita Kumari

Babita Kumari 3 years ago

Wah wah kya bat hai.

Bandana Singh

Bandana Singh 3 years ago

सुन्दर रचना

Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

सादर आभार आदरणीय।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर रचना

Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

बहुत-बहुत आभार सादर धन्यवाद।

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