कविताअतुकांत कविता
कुछ उल्टा सीधा
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कहना था थोड़ा,मैं ज्यादा ही कह गया |
न जाने कैसे कब किस धारा में बह गया |
सुनकर हम भौंचक्के रह गए |
हम जो सुन न पाए वो वह कह गए |
प्यार का अतिरेक था ,या चाहत का भँवर
हम ड़ूबने उतराने लगे थे |
छोड़ने को मजबूर हुए सफर |
विराम उसपर लग गया |
लग गयी थीं
शर्तों की सूची
कैनवश पर चला गयी नियमों ने कूची
किसी ने हमसे न पूछा
तुझे क्या मंजूर है |
किसमें है तुम्हारी रूचि |
हम खुद ही आए थे
बिन बुलाए |
उनकी क्या गलती थी |
ऐसे लोग जब जाते हैं ठुकराए |
कृष्ण तवक्या सिंह
17.02.2017.