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माता सरस्वती ज्ञान और बुद्धि की देवी है। सृष्टि में जितने भी वेद पुराणों का ज्ञान है, सब उनसे है, समस्त संगीत और विद्या उनसे है।
मां सरस्वती को विद्या बुद्धि प्रदायिनी माना जाता है।
कहते है सृष्टि के आरंभ में आदिशक्ति ने स्वयं को तीन भागों में विभाजित किया - ज्ञान, धन और शक्ति। एक प्रणाली के अनुसार सब अपने -अपने पुरुष अंश से जा मिली, सरस्वती ब्रह्मदेव से, लक्ष्मी नारायण से और पार्वती महादेव से।
पुराणों में लिखा है स्वयं ब्रह्मा ने तीर्थों के तीर्थ पृथुदत्त तीर्थ पर बैठकर सृष्टि की रचना की और पृथ्वी, अग्नि और जल से पृथुदत्त स्थान का निर्माण किया! राजा पृथु के नाम पर इसका नाम पृथुदत्त तीर्थ पड़ा! मान्यता है ऋषि वशिष्ठ को विश्वामित्र के प्रहार से देवी सरस्वती ने ही बचाया इसी से उन्हें ऋषिवर ने विलोप का शाप दे डाला!
ऋषियों की तपस्या से चैत्र चतुर्दशी को देवी सरस्वती शाप मुक्त होकर सरोवर रूप में स्थापित हुई!मां सरस्वती सरोवर में कमल पर विराजित हैं।सरोवर संसार का प्रतीक है। कमल का पुष्प सांसारिक दुर्गुणों से ऊपर उठ जाने का प्रतीक है।कीचड़ या सरोवर संसार का प्रतीक है। उनकी सवारी धवल हंस है।धवल हंस ब्रह्मचर्य का प्रतीक है।देवी के कर-कमलों में वीणा सुशोभित है। वीणा साधना का प्रतीक है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा की पत्नी ने अपने पति से एक अनोखे फल का वरदान मांगा।जिसका रंग बहुत सुंदर हो, उस फल का पेड़ न स्वर्ग में न धरती पर हो,जिसके फल गुच्छे के रूप में हों और पूरी साल आयें,उसमें बीज न हों, फल को खाने के समय गंदगी न हो, जब ये कच्चा हो तब खाने या सब्ज़ी के रूप में और पक जाए तो पूजा में उपयोग हो और सबसे बड़ी बात इस पेड़ के प्रत्येक भाग का उपयोग हो।तब मां सरस्वती ने उन्हें केले के पेड़ का सुझाव दिया। इससे ऋषि दुर्वासा की उलझन देर हुई।
कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। पूरी सृष्टि मौन थी तो ब्रह्मा जी ने विष्णु जी की अनुमति लेकर अपने कमंडल के जल से सरस्वती की उत्पत्ति की। इसके बाद सृष्टि को स्वर मिले और देवता और मनुष्य, सभी मां सरस्वती की पूजा अराधना करने लगे। इसलिए वसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं पीले वस्त्र धारण करती हैं।
गीता परिहार
अयोध्या