कविताअतुकांत कविता
चित्राक्षरी काव्य रचना
फरवरी - 2021
[रचना]
अपना वह घर पुराना..
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बीता हुआ वह जमाना,
जब कभी याद आता है,
मिट्टी का अपना वह घर,
पुराना बहुत याद आता है।
पिता से मिलता सिक्का,
अम्मा से मिला जेब खर्चे,
एक-आध रुपये पाने का,
जहो जहद याद आता है।
बचपन में लड़ना झगड़ना,
रूठकर आंगन में बैठ जाना,
शाम होते ही वो सब कुछ,
भूल जाना भी याद आता है।
दादा की पुरानी साईकिल ,
गली में सुबह शाम चलाना ,
दादी का गुस्से से चिल्लाना,
यह भी बहुत याद आता है।
घर के सामने की अध खुली,
खिड़की से झाकना अभी भी,
वहाँ पर छिप कर किसी का,
मुस्कुराना बहुत याद आता है।
उससे मिलने का वो बहाना,
न मिलना,फिर कभी, कहना!
जरा सी बात पर खूब हँसना,
बहुत सी पुरानी बातें याद आता है।
@©✍️ राजेश कु० वर्मा'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)
📲 - 7979718193
सुन्दर भाव भरी रचना ।
जी, सादर आभार आदरणीया।
बचपन की यादों का बेहतरीन काव्य संयोजन
जी बिल्कुल
बेहद खूबसूरत
सादर धन्यवाद महोदय! आपकी सराहना हमारी लेखनी को बल देती है
बहुत ही प्यारी सी रचना 👌🏻
आपकी टिप्पणी एवं सराहना सदैव बना रहे।