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लो आ गया बसंत - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

लो आ गया बसंत

  • 313
  • 6 Min Read

लो आ गया बसंत

लो आ गया बसंत,
धूप भी आज मुसकायी है.
कोहरे से लिपटी धरती ने,
ठंड से मुक्ति पायी है.

बसंत का वंदन करने,
दसो दिशाएँ आयी है.
बसंत का अभिनंदन करने,
उल्लास का चंदन लायी है.

पीली चुनर ओढ़ सरसों की,
प्रकृति भी इठलायी है.
दुल्हन सी सजी धरती भी,
थोड़ा सा शर्मायी है.

बड़े दिनों के बाद फिर,
धूप चमकती आयी है.
सर्दी की अलसायी आँखों में,
बसंत की मधुरता लायी है.

डाली की कलियाँ भीआज,
थोडा़ सा मुस्कायी है.
चिड़िया ने भी अपनी पांखे,
थोड़ी सी फैलायी है.

फूल- फूल गयी डाली,
मौसम में बहार आयी है.
बासंती पवन हुयी मतवाली,
मधुर सुगंध छायी है.

धरती से फाग खेलने,
बसंत ऋतु आयी है.
टेसू के फूलों का रंग,
साथ अपने लायी है.

संसार में खुशियाँ भरने,
बसंत ऋतु आयी है.
धरती का संताप हरने,
बसंत ऋतु आयी है.

अमवा में आ गयी है बौरे ,
कोयल ने कूक लगायी है.
गुन- गुन कर रहे है भौरे,
धरती भी हर्षायी है.

बड़े दिनों के बाद खेत में,
सरसों फिर खिल आयी है.
बड़े दिनों के बाद गेहूँ से,
गले वो मिल पायी है.

टेढ़ी चितवन से उसने,
सूरज से आँख मिलायी है.
लाज का घूँघट ओढ़े,
खेतों में मिलने आयी है.

नैनों में सपने भरने,
बसंत ऋतु आयी है.
मुरादों को पूरी करने,
बसंत ऋतु आयी है.
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

वाह,अनुपम स्वागत बसंत आगमन का!!

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

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