कविताअतुकांत कविताअन्य
हिसाब
❤❤❤
अपनी मसरूफियत से दो पल निकाल ,
वो बैठा जो मेरे पास ।
अपनी ही उलझनो मे खोया था इस कदर
लिए हिसाब की किताब ।
कर ही बैठा मुझसे भी वो,
हँसकर ही एक सवाल ।
सुनो जांना,तुम भी कुछ हिसाब दो
बचाया होगा तुमने भी कुछ ,
तुम्हारे हिसाब की भी किताब दो।
मेरी जुबां खामोश रही ,
आँखे हो उठी कुछ नम।
एक दर्द सा उठा दिल में,
जो टटोला हमने खुद को तो
हिसाब इतना ही मिला ।
प्यार के सिवा मेरी ,
बचत मे कुछ बचा नहीं।
तुम खोये रहे हो हर लम्हा,
ख्वाहिशों के हिसाब में।
मैने मेरे प्यार का कभी ,
हिसाब ही रखा नहीं।।
©️®️पल्लवी रानी❤
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्यान, महाराष्ट्र