कविताअन्य
सुनो
बड़े इतराते हो
दौलत का धमण्ड
बड़ा दिखाते हो
भरपूर सुख सुविधाओं
में जीवन व्यतीत करते हो
लेकिन इन सुख सुविधा से
आराम तुम्हें मिल जाता होगा
लेकिन सुकून कहा मिल पाता होगा
कभी चोरी,कभी टैक्स का डर
तो तुम्हें सताता होगा।
रातों की नींद ,दिन का चैन
सब छीन जाता होगा।
सुनो
मैं मजदूर हूँ
माना आराम की ज़िंदगी से
कोसो दूर हूँ।
बस इतना ही कमाता हूँ
सुकून से दो वक्त की रोटी
में ही खुश रहता हूँ।
ना मुझे चोरी का डर
ना कोई टेक्स का
डर सताता हैं।
बस जिंदगी
में सुकून ही सुकून
नजर आता हैं।
सुख सुविधाए जिंदगी
का सुकून छीन लेतीहैं
मैं खुश हूँ कि मैं सुकून में हूँ।
ममता गुप्ता