कवितागजल
कई मर्तबा मासूम की तरह समझाया तुझे,
लग ना जाये धूप शज़र की मानिंद बचाया तुझे।
कहीं गम के साये में टूट ना जाये तेरा दिल,
रोने पर, गले से कसकर लगाया तुझे।
लग ना जाये कहीं कम्बख्त बुरी नजर,
बान्ध कर ताबीज बलाओं से बचाया तुझे ।
कहीं ऊब ना जाये तेरा बचपन जवानी से,
बाग बगीचों गली सडकों पर घुमाया तुझे।
समझ आजाये जमाने में अच्छे बुरे की,
हर एक सुलूक को किस्से में सुनाया तुझे।
बहल जाये दिल तेरा जमाने की रूखियों से,
बेरुखी आवाज में बेशुरा गीत सुनाया तुझे।
थक कर सो जाये चैन ओ सुकूँ की नींद,
गोद में सिर रखकर हरदम सुलाया तुझे।
टिंकू शर्मा "मिथलेश"