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जनवरी की ठंड - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

जनवरी की ठंड

  • 204
  • 5 Min Read

वो सर्दी का आना और मौसम का बदलता मिजाज़,
कभी गुनगुनी धूप ,कभी बिछ जाना कोहरे की चादर,
पत्तियों पर शबनम की चमकती बूंदे बिखरी चांदी जैसे,
बर्फीली फिज़ाओं से सज-संवर निखर जाना पहाड़ों का,
मनभावन और सुहाना होता है यूँ प्रकृति का रंग बदलना ।।

ये सर्दी का मौसम है उनके लिए सुहाना जो हैं साधन-संपन्न
गुलाबी ठंड का आना खुद को समेट लेना गरम लिबासों में ,
शिमला, कश्मीर, नैनीताल,मसूरी, मनाली में पर्यटन पर जाना,
क्या होता है रोमांच, बर्फिली वादियों में जाकर मनाना जश्न,
गुलाबी ठंड को उत्सव मान लेना नहीं मुमकिन सबके लिए।।

पूछो कभी उनसे भी लगती है क्या ये सर्दी उन्हें भी गुलाबी?
जिनके सिरपर छत नहीं, फुटपाथ जिनका बसेरा हो ,करते हैं जो इंतज़ार बचने को ठण्ड से चौराहों पर जलते अलाव की,
मिल जाए कोई रैन बसेरा कि खुले आसमान के नीचे रहा नहीं जाता ,डाल दे कोई दानवीर आकर उनपर एक रहम का कंबल ।।

मौलिक
डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी, उत्तराखंड।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

सुन्दर रचना

Yasmeen 18774 years ago

Thank u☺

Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 4 years ago

शानदार सृजन 👌👌

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

Yasmeen 18774 years ago

Ji shukriya ☺

वो चांद आज आना
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