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"झूठ का दर्द" - Poonam Bagadia (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"झूठ का दर्द"

  • 308
  • 11 Min Read

(लघुकथा)

शीर्षक: झूठ का दर्द

दूर ढलता हुआ सूरज अपनी लालिमा से परिपूर्ण था और यहाँ बालकनी से झांकती संध्या अपने विचारों के सागर में डूबी हुई थी
"लो कॉफी तो पी सकती हो... सुबह से अपने खाने का भी होश नही है तुम्हें....
प्रिया की आवाज़ सुन, संध्या खुद को संभालती हुई एक फीकी सी मुस्कुराहट को जबर्दस्ती अपने होंठों तक ले आई।

"ला मेरी माँ, पी रही हूँ..."
कहते हुए संध्या ने कॉफी का मग थाम कर फिर सूरज की गहरी होती लालिमा में जैसे खुद को छिपा दिया हो।
"तुम उससे मिलती क्यो नही..बात क्यों नहीं करती...?
"किससे...?" उसने अन्जान बनते हुये कहा।

"वही... तेरा राइटर बाबू...कहते हुए प्रिया शरारत से मुस्कुरा दी।

"अब तो जनाब ने इक़रारनामें पर साइन भी कर दिए..!" प्रिया ने राइटर बाबू का दिये खूबसूरत दिल बने ग्रीटिंग की तरफ इशारा किया।
राइटर बाबू का नाम आते ही संध्या का मुरझाया चेहरा शर्म से लाल हो गया, पर तभी खुद को जैसे सपनों की दुनिया से जबरदस्ती खींच कर यथार्थ में रखती हुई संध्या ने नहीं में सर हिला दिया।

"नहीं रे... मुझे उनके इस इक़रार से इनकार है..!" कहते हुए उसने आँखों में उमड़ते बेबसी और दर्द को छिपाने की कोशिश की।

"अरे कैसी लड़की है तू... कल तक वो झूठ बोलता रहा वो कम पढ़ा-लिखा, बेरोजगार है तो तू उस पर जान देती थी.."
"जान आज भी उसके लिये है...!संध्या ने खुद में उलझे हुये मंदिम स्वर में कहा।
संध्या.. आज उसने सच बोला है वो राइटर के साथ बड़ा बिजनेस मैन भी है तो तू उससे दूर क्यो भाग रही है...?

"ह्म्म्म... तू नहीं समझती यार... उसे लगता है शहर की लड़कियाँ सिर्फ पढ़े लिखे रोजगार लड़के से ही प्यार कर सकती है इसलिए तो उसने झूठ बोला था..." एक गहरी सांस छोड़ते हुये मायूसी से उसने कहा।

प्रिया उसके चेहरे पर झलक रहे दर्द को साफ पढ़ रही थी, जैसे ही उसने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला संध्या ने अपनी अंगुली उसके होठों पर रख कर चुप रहने का संकेत किया।
"मैं नही चाहती प्रिया...उसकी इस सोच को मजबूती मिले.... मेरा प्यार तो उस कम पढ़े रोजगार की तलाश में भटकते राइटर बाबू के लिए था....ये वो नहीं है..!
ये... ये तो झूठ में लिपटा वो सच निकला जो मेरे ही नही हर लड़की के आत्मसम्मान पर तीखा प्रहार कर गया..!
कहते हुए संध्या ने डूबते सूरज की ओर ऐसे देखा मानो वो सूरज उसके दिल में उपजे प्रेम को अपनी बाहों में भर कर धीरे-धीरे अंधकार में डूब रहा हो।

©️ पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना

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Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

बेहतरीन पूनम जी

Poonam Bagadia3 years ago

शुक्रिया विनय जी...!😊

Mohammad Afroz

Mohammad Afroz 3 years ago

बहुत बढ़िया 👏👍

Poonam Bagadia3 years ago

अफ़रोज़ जी बहुत बहुत धन्यवाद..!

Poonam Bagadia3 years ago

शुक्रिया अफरोज जी..!☺️

The Indian writers 11

The Indian writers 11 3 years ago

Amazing dear💕

Poonam Bagadia3 years ago

Thanks friend..!😊

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मर्मस्पर्शी रचना..!

Poonam Bagadia3 years ago

आपकी टिप्पणी का सादर आभार सर...!

शिवम राव मणि

Poonam Bagadia3 years ago

शुक्रिया शिवम जी..!

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