कवितालयबद्ध कविता
मैंने कहीं पढा़ है,
एक सुंदर विचार ने
मेरे मन को यूँ गढा़ है,
"जब हम प्रार्थना करते हैं
भगवान हमको सुनता है
मगर ध्यान में हम सबका
मन ईश्वर को सुनता है"
इस मौन प्रार्थना में डूबा मन
चैतन्य के आलोक में,
जड़ता के घन अंधकार से
छूटा मन
चिंतन के अद्भुत धागों से
मन के ताने बाने में
मनोभाव को बुनता है
जीवन के अद्भुत सूत्रों को
मन में गुनता है
अहंकार के दायरे से बाहर आकर,
एक अबोध सा बालक बन
माँ की गोदी सा मानकर,
समर्पण की मुद्रा में सो जाता है
मन की धुँधली रेखाओं में
कान्हा की अद्भुत छवि को
बरबस यूँ उतारकर
उसके परमानंद में खो जाता है
इस क्षणभंगुर जीवन से नाता तोड़कर
कुछ पल के ही लिए सही
मन को एक दिव्य दिशा में मोड़कर
एक अद्भुत,अलौकिक,
निर्विकार, अभौतिक से
जगत् की सृष्टि कर
बस उसका ही हो जाता है
मन की धरती में
चेतना के कुछ मोती
बो जाता है
द्वाराः सुधीर अधीर