कवितालयबद्ध कविता
सम्मान आज़ादी का.. (आजादी विशेषांक)
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
रख लो तुम मान आज़ादी का..
वीरों ने जान गंवाई है..
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
जहा देश की मिट्टी मां समान...
अविरल नदियाँ मां का आंचल.
जहा सीना तान खड़ा हिम है...
उस हिम ने भी लाज बचाई है...
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
इस धरा को सींचा वीरों ने..
मुश्किल मे खुद के लहू से भी..
देने को हमे आज़ाद वतन..
हँस हँस हस जान गंवाई है..
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
वो भी थे लाल किसी मां के..
पर वतन को मां वो मान गए..
ममता से बड़ी मां मातृभूमि..
देख उनकी मां इतरायी है...
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
अब करते है विरले याद उन्हें...
जिनका पुरूषार्थ निराला था..
बस आजादी को मान के धर्म...
सारी जिंदगी इस लगायी है..
उनको इतिहास मे दबा दिया..
उनसे कैसी ये रुसवाई है..
कर लो सम्मान आज़ादी का..
मुश्किल से बहुत मिल पायी है..
स्वरचित
विनय गौतम विनम्र
दुबई