कविताअतुकांत कविता
मौन हो तुम
तुम व्यक्त नहीं करते स्वयं को
तुमने सीखा हैं सदा ही
वेदनाओ पर मुस्कुराना
तुम सह लेते हो चुपचाप ही
मन कि पीड़ा को
तुमसे मिल के ये तो मुझे समझ आ ही गया कि
किसी के अस्तित्व को कभी परखा नहीं जा सकता
किन्तु,लिखा जा सकता हैं
उसके विचारों को
और ये जो तुम्हारे हृदय कि अभिव्यक्ति होती हैं
सदा मौन धारण किए रहने वाली....
उसे भी अब से मैं ही व्यक्त करूंगी,
अपनी बोली,या तुमसे संवाद कर के नहीं,अपितु
अपितु अपनी लेखनी के माध्यम से
Somya Tiwari
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