कवितागजल
चाँद सा मुखड़ा.......
भोर के अलसाये पहर में
सुनहरा कोई ख़्वाब सा,
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ओस की बूँदों में ज्यों
भीगा कोई ग़ुलाब सा,
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सिमटा हो ज्यों सारी क़ायनात का यौवन
कलि पे यूँ सैलाब सा,
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हुस्न भी शरमा जाए
उजला-उजला लाजवाब सा,
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अहसास के मोती लपेटे चहुँ ओर
आसना से सराबोर बेहिसाब सा,
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सज़दे में झुक जाए हर सै
वो मुखड़ा है महताब सा....!!
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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"
बहुत सुंदर
ह्रदयतल से आभार नेहा जी
जी शुक्रिया