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एक पुरानी खिड़की - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

एक पुरानी खिड़की

  • 175
  • 8 Min Read

एक पुरानी खिड़की
जैसा ही तो होता है
हर साल के आखिरी दिन का
हर बेशकीमती लमहा
जो लगता कुछ तनहा-तनहा
बिखरता, छिटकता सा
ठिठकता, झिझकता सा
रुकता-चलता,
हँसता और सिसकता सा

मन की नाजुक पंखुडियों पर
ढलकता सा
एक खुशनुमा अहसास बन,
और कभी संग आँसुओं के,
छलकता सा

जो ले आता है साथ अपने
खट्टी-मीठी सी यादों में
सिमटी-सिमटी सी बहारें
भीनी सी खुशबू कभी
और कभी आँसुओं की फुहारें
बार-बार मन को पुकारे
झाँकने को, खोलकर
कुछ बंद झरोखे,
बार-बार हमको टोके

" जरा ठहर तो,
कुछ घडी़ और
कुछ पहर तो,
जरा ठिठककर
साथ निभा ले,
साथ बिठा ले,
मन के कोने में बसा ले

कल गुजर जाने वाले
इस बासी साल को,
बन पुराना,
कल के पहले
पल में ही
जीवन की दीवार से
एक पुराने कलेंडर से
थोडा़ सा उदास होकर
एक झटके में अचानक
उतर जाने वाले,
बेआबरू होकर
जीवन के हर कूचे से
निकल जाने वाले
इस आउटडेटेड माल को

इसके हर पन्ने में सिमटी
तारीखों को
उनके हर लमहों में सिमटे
कुछ खुशनुमा अहसास और
पाँवों में काँटा बन चुभती
तकलीफों को
यादों की गहरी घाटियों में
कुछ सतरंगी, कुछ बदरंगी सी
तस्वीरों सा आज सजा ले "

तभी अचानक
एक निर्मम सी आँधी
आगे बढ़ते वक्त की एक
दो टूक सी मुनादी
इन नाजुक से अहसासों की
बनकर बरबादी

इस खिड़की के पाटों को
बीते कल से होती इन मुलाकातों को
बेरुखी से बंद सा कर देती है

यादों की इस बयार को
मन के हर झनके तार को
इसके कोने में बसते
जज़्बात के संसार को
सन्नाटे से लादकर
सन्न सा कर देती है

और जबरन मुँह मोड़कर,
सब कुछ पीछे छोड़कर,
एक ही झटके में नाता तोड़कर
आगे और बस आगे ही
देखकर चलते रहने को
अनायास, अनचाहे ही
रजामंद सा कर देती है

द्वारा: सुधीर अधीर

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

एक उत्तम श्रेणी की रचना है, बधाई

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर सर

प्रपोजल
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माँ
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वो चांद आज आना
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