कविताअतुकांत कविता
****( सूरज से लड़ लूंगा) ***
अपने जीवन की यूहीं शाम नहीं होने दूंगा
उम्मीदों का यूं ही सूरज नहीं बुझने दूंगा।
भले ही सुबह से शाम हो जाए
भले ही मेरा यह तन थक जाए।
मैं लड़ लूंगा अपनी किस्मत से।
मैं भी सूरज बन चमकूंगा।
अपने हाथों अब तूलिका से
खुद अपनी किस्मत लिखूंगा।
सूरज ढलने से नहीं होती केवल रात
बताता है सूरज कल फिर नई सुबह होगी
आज नहीं तो कल मेरी भी पहचान नई होगी।
दुनिया मुझको भी जानेगी किस्मत साथ खड़ी होगी
सरिता सिंह ( स्वरचित) गोरखपुर उत्तर प्रदेश