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म्हारो प्यारो राजगढ़ - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

म्हारो प्यारो राजगढ़

  • 214
  • 30 Min Read

"करते हैं हम हमेसा मस्ती"
क्योंकि जिंदादिल है राजस्थानी हस्ती"

म्हारो प्यारो राजस्थान
जी हाँ मैं हूं राजस्थान के जिले अलवर की तहसील राजगढ़ से
जो अपनी पहाडी व किलो सुंदरता की वजह से प्रसिद्ध हैं,,
अलवर जिले का नाम सुनते ही आप सभी को बॉलीवुड की सुपरहिट हिंदी फिल्म "करन अर्जुन याद आ गयी होगी "
क्योंकि इस फ़िल्म की शूटिंग अलवर के भानगढ़,अजबगढ़ किले में ही हुई थी।।
आइए पहले आपको मेरे अलवर जिले से रूबरू करवाते हैं,अलवर जिले को जाने बिना मेरे छोटे से कस्बे राजगढ़ के बारे में आप लोग नही जान सकते।

"राजस्थान के सिंह द्वार के नाम से विख्यात अलवर"
अरावली पर्वत की सुरम्य उपत्यकाओं में स्थित है।

अलवर शहर अपनी प्राकृतिक व ऐतिहासिक विरासत के कारण यह पर्यटकों का सदैव आकर्षण का केंद्र बना रहता हैं। यह जयपुर से यह लगभग 148 किलोमीटर था दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित ये शहर अपनी नैसगिर्क सुषमा के कारण अन्य जिलों से अलग अपना विशेष स्थान रखता हैं।।कहा जाता है की इस नगर का नाम अलावत खान मेवाती के नाम पर पड़ा था। लेकिन अलवर के महाराजा जयसिंह के शासन काल में हुए एक शोध के अनुसार इस क्षेत्र पर आमेर के महाराजा काकल के दूसरे पुत्र का अलगुहराज का अधिकार हो गया था उसने अपने नाम पर यह शहर बसाया था। मुगलों के पराभव काल मे 25 नवम्बर 1775 ई.में को राव राजा प्रतापसिंह ने अलवर की स्थापना की थी अलवर ,भरतपुर, करौली को मिलाकर एक मत्स्य संघ बनाया गया।
और 22 मार्च 1949 को मत्स्य संघ
व्रहद राजस्थान में विलय होने के साथ अलवर एक जिले के रूप में अस्तित्व में आया ।
अलवर जिला एक ऐतिहासिक नगरी हैं व काफी दार्शनिक स्थल हैं जो अपनी सुंदरता व कलाकृतियों से पर्यटकों के मन को लुभाते है '"बालाकिला,सिलीसेढ़,सरिस्का महल,मुसी महारानी की छतरी,विनय महल,जयसमंद झील,पांडुपोल, भर्तृहरि,नीलकंठ, आदि अलवर जिले में है।
आइए अब आपको बताते हैं मेरे प्यारे राजगढ़ के बारे में।

"राजगढ़ है राजाओं का गढ़
राजगढ़ का किला हैं हमारी शान"

तो आइए जानते हैं राजगढ़ के गौरवशाली इतिहास के बारे में।
इतिहास के आईने में देखा जाए तो राजगढ़ अलवर रियासत की राजधानी रहा है। राजगढ़ क़िले का निर्माण 1766ई.प्रथम शासक राव राजा प्रतापसिंह ने करवाया था। वे यहाँ के पहले राजा थे इसलिए उन्होंने जनसहयोग से इस दुर्ग का निर्माण करवाया था। 1775 में अलवर रियासत की बागडोर संभालते हुए उन्होंने राजगढ़ को अलवर की राजधानी बनाया था।ये किला 250/300 साल पहले बनाया गया था।ये किला बना है पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर।इसकी ऊँचाई बहुत ही ज्यादा है और माना जाता है कि ये अलवर में बने सभी किलों से बड़ा किला हैं।।इस किले की में अजब गजब तरीके से बनाई गई कलाकृतियां इसकी सुंदरता का बखान करती हैं,इस के स्तम्भो पर बहुत ही बारीक़ से सोने व चांदी की कारीगरी से सजाया गया है,,व दीवारों पर भी चित्रकारी सभी के मन को लुभाती हैं।
ये किला अपने आप मे काफी विशेषताओं को समेटे हुए है।इस किले में सुरक्षा की दृष्टि से जो बुर्ज बनवाई गई थी वो आज भी दूर से ही नजर आती है।किले में बना शीश महल तथा गुप्त रास्ते भी इसके आकर्षण का केंद्र बना है।इस किले में अस्तबल था काफी ख़ुफ़िये रास्ते भी बने हुए हैं।इसके अंदर एक कुआँ हैं जिसमे रहस्यमयी सुरंगे बनाई गई है,
इस किले में हनुमान जी का मंदिर हैं रोजाना पूजा पाठ किया जाता है।
कहा जाता है कि ये एक रहस्यमयी किला हैं इस किले में अभी भी खजाना छुपा हुआ है।लेकिन जो भी कोई व्यक्ति उस खजाने को ढूंढने गया वो कभी वापस नही आया ।इस किले में खजाना अभी भी छुपा हुआ है जिसकी तलाश में लोग यहां आते रहते हैलेकिन वो खजाना कहा छुपा है ये कोई नही जानता ।इसके अलावा और भी किले व मंदिर हैं।कंकवाड़ी किला ,टहला का किला,माचाडी का किला,गोविंद देवजी व जगन्नाथ जी का मंदिर जिनके साथ भी अनेक चमत्कारी कथाए जुड़ी हुई हैं।तांबे,लोहे ,तथा सफेद मार्बल पत्थर ने राजगढ़ को देश के मानचित्र पर अपनी पहचान दिलाई हैं।किसी जमाने मे राजगढ़ में टकसाल हुआ करती थी जिसे ब्रिटिश काल में कलकत्ता ले जाया गया, जीरे की मंडी के लिए तो मेरा राजगढ़ देश विदेश में विख्यात था। लेकिन आजादी के बाद राजनीतिक अपेक्षाओं का शिकार रहा और इसके स्वर्णकाल धीरे धीरे अस्त हो गया।।राजगढ़ वैसे तो सभी सुविधाओं से पूर्ण है , लेकिन चहुमुखी विकास नही हो पाया है ।

अब बात करते है यहाँ के स्वादिष्ट व्यंजनों की।
"बच्चे हो या बड़े बुजुर्ग सभी को पसन्द होते है कचोरी समोसे मतलब चटपटे व्यंजन।"
इन सभी का नाम सुनकर ही मुँह में पानी आ जाता हैं। आजकल सभी चटपटे खाने के शौकीन होते है। जब कुछ चटपटा खाने का मन हो , मेरे छोटे से कस्बे की याद आ ही जाती है। राजगढ़ के लोग वैसे भी चटपट स्वभाव के है अपनी चटपटीबातों से सभी का दिल जीत लेते हैऔर खाने के मामले में भी चटपटे है। जहां अलवर जिला अपने मिल्क केक के लिए जाना जाता है वही मेरा छोटा सा राजगढ़ चटपटी कचोरी,समोसे,बंदर अंकल की नमकीन,आजाद की कुल्फी,सरदार जी की चाट, आदि चटपटे व्यंजनों के लिए जाना जाता हैं।जब भी घर मे मेहमान आते है तो मेहमान भी हमारे यहाँ की कचोरियों का स्वाद हमेसा याद रखते है।आज आपको राजगढ़ कस्बे की चटपटी चीजो के बारे में बताते है कुछ चटपटी बातो व यादों के साथ।
दाल कचोरी/प्याज कचोरी
राजगढ़ की प्रसिद्ध है दाल कचोरी
मैं यहाँ चांदपोल हलवाई की दाल कचोरी की बात कर रही हूँ। जयपुर के चांदपोल बाजार की नही।
लेकिन राजगढ़ के चांदपोल हलवाई की दुकान भी जयपुर के चांदपोल बाजार से कम नही है।चंदपोल हलवाई की कचौरी व समोसों के लिए ।सुबह से ही लम्बी कतारें लगी नजर आती है, मैदा से बनी ये कचौरी बहुत ही खस्ता बनी हुई होती हैं, दाल के मसाले से भरी हुई कचोरी ओर
साथ मे इनके आलू छोले की सब्जी और ऊपर से दही।बस खाने में फिर तो मजे ही आ जाता है। मन करता है बस खाते ही जाओ।पेट भर जाता हैं लेकिन मन नही भरता।कचोरी के साथ जलेबी मिल जाये तो स्वाद और बढ़ जाता है।इसी दुकान के पनीर समोसे भी बहुत प्रसिद्ध है,, नमकीन बेचने वाले अंकल को सब बंदर के नाम से ही जानते है,,,ये तो नही पता उन्हें बंदर क्यों बोलते है लेकिन उनके हाथ की बनी नमकीन के सब दीवाने है।।ये नमकीन बेसन के मोटे सेव की तरह होती हैं ,बहुत ही तीखी होती है। ये किसी कारखाने में तैयार नही होती ।
बंदर अंकल खुद के हाथों से अपने घर पर ही तैयार करते है।
इस नमकीन की सब्जी बहुत ही टेस्टी बनती हैं। बच्चो हो या बड़े बुजुर्ग सभी को बड़ी ही पसन्द है बंदर अंकल के सेव।सरदार जी की चाट- अब ना वो दिन रहे और ना वो सरदार जी।
सरदार अंकल की चाट का स्वाद आज भी याद है मुझे। उनका व्हीलचेयर पर बैठकर गली गली में चाट बेचना ।
उनकी आवाज सुनते ही चाट लेने की लिए दौड़ना।
कैसा लगा आप सभी को मेरे छोटे से कस्बे के बारे में जानकर बताना जरूर
और हो सके तो कभी आना जरूर मेरे शहर अलवर राजगढ़ में।
आप सभी के स्वागत के इंतजार में
एक बार आओ जी म्हारे पावना।

ममता गुप्ता
अलवर राजस्थान

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर और विशद वर्णन.. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..! व्यंजनों के वर्णन से तो मुंह में पानी आ गया..! बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान..! 👌👍

दादी की परी
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