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कविताअतुकांत कविता
तुम्हारा अहसास..... मेरे मन मस्तिष्क में आज तक अंकित है तुमसे प्रथम मिलन की छवि मुझको अहसास कराती है तुम्हारा आसपास होने का तुम्हारा यही अहसास गर्मी की रातों में सुहानी पुरवाई और जाड़े के दिनों में मखमली धूप सा लगता है.... अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’
बहुत सुंदर रचना
सर आपका अंदाज़ दिलचस्प है। मैं आपकी और कविताओं को पढ़ना चाहूंगा
जरूर, जल्द ही कुछ और रचनाएं पढ़िएगा....