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पूछता बचपन - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

पूछता बचपन

  • 186
  • 4 Min Read

ये कैसा विकास है
बचपन पूछता हमसे,
ये कैसा विकास है।
21वी सदी में भी मेरा,
ऐसा क्यों हाल है।

बचपन पूछता सवाल है_

फटे कपड़ो में लिपटा बचपन,
भूखा प्यासा सो रहा ।
धरती बनी बिछौना इसका,
आसमान ओढ़े पड़ा ।

कही बचपन धूप में तपता,
कही बारिश में भीग रहा ।
कही सर्दी से थर-थर काॅपे,
कही धूल में सना खड़ा ।

भूख गरीबी बेबसी के,
अंधियारों में खो रहा ।
कही बीनता टीन, प्लास्टिक,
कही बर्तन वो धो रहा ।

कही माँगता है इक पैसा,
कही गाड़ियाँ धो रहा ।
कही अखबार बेचता,
कही ईंटा- बजरी ढो रहा ।

अपनी नन्ही भोली आॅखों से,
प्रश्न वो हमसे पूछ रहा ।
क्यों हूँ सुविधाओं से वंचित,
क्यों बोझा मैं ढो रहा ।
स्वरचित रचना।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

दुखद है, सभ्य समाज में बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

देश में बच्चों की वर्तमान दशा का वास्तविक चित्रण.

राजेश्वरी जोशी3 years ago

धन्यवाद 🤝🙏🙏

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