कवितालयबद्ध कविता
ये कैसा विकास है
बचपन पूछता हमसे,
ये कैसा विकास है।
21वी सदी में भी मेरा,
ऐसा क्यों हाल है।
बचपन पूछता सवाल है_
फटे कपड़ो में लिपटा बचपन,
भूखा प्यासा सो रहा ।
धरती बनी बिछौना इसका,
आसमान ओढ़े पड़ा ।
कही बचपन धूप में तपता,
कही बारिश में भीग रहा ।
कही सर्दी से थर-थर काॅपे,
कही धूल में सना खड़ा ।
भूख गरीबी बेबसी के,
अंधियारों में खो रहा ।
कही बीनता टीन, प्लास्टिक,
कही बर्तन वो धो रहा ।
कही माँगता है इक पैसा,
कही गाड़ियाँ धो रहा ।
कही अखबार बेचता,
कही ईंटा- बजरी ढो रहा ।
अपनी नन्ही भोली आॅखों से,
प्रश्न वो हमसे पूछ रहा ।
क्यों हूँ सुविधाओं से वंचित,
क्यों बोझा मैं ढो रहा ।
स्वरचित रचना।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड
दुखद है, सभ्य समाज में बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
🙏🙏
देश में बच्चों की वर्तमान दशा का वास्तविक चित्रण.
धन्यवाद 🤝🙏🙏