कवितालयबद्ध कविता
आज फिर से आँख मेरी भर आईं है
फिर से बीती हुई बात याद आई हैं
भूलने की कोशिश बहुत करती हूँ
उस काली रात को
जब अपनो ने हवा दे डाली बेवजह की बात को।।
आखिर मेरा क्या कसूर था?
क्यों ना हुआ कोई मेरा था?
बस थोडे अपने दिल की सुनने लगी थी।
कुछ सपने अधूरे थे उन्हें पूरा करने लगी थी।
क्यो! मेरे ही अपने दुश्मन बन गए,
एक दूसरे की सहमति से जज बन गए।।
मेरी एक ना सुनी थी,मेरी आत्मा भी मर चुकी थी।
देख अपनों के असली रंग,दिल दिमाग मे एक खलबली मची थी।
क्यो होता हैं अत्याचार,क्यो बनाते लोग बातें हजार।
लोगो की बातों में आकर घर परिवार हो जाते हैं बर्बाद।।
थोड़ा नारी को समझने की कोशिश तो करो।।
कभी उससे प्यार से बात करके उसके मन की तो सुनो।।
लोग तो बस यही चाहते हैं, चलो!
आज किसी के घर मे आग लगाते हैं।।
भूल जाते है लोग,आग लगाकर की चिंगारी तो उनके घर भी जाएगी।।
आज मेरा घर जला कल बारी तेरी भी आएगी।।
हिसाब तो पल पल का तुझे भी चुकाना होगा।
जो किया है कर्म उसका फल तो तुझे भी भोगना होगा।।
मत इतरा समझ कर खुद को "खुदा"
तूने "ममता"का अपमान किया है जिसकी तुझे सजा देगा "खुदा"।।
ममता गुप्ता