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रोटी - विमल शर्मा 'विमल' (Sahitya Arpan)

कवितागजल

रोटी

  • 616
  • 3 Min Read

रोटी

हँसाती कभी तो रुलाती ये रोटी।
जलन भूख की है मिटाती ये रोटी।

न हिंदू न मुस्लिम न कोई इसाई,
सभी को बराबर बनाती ये रोटी।

दिखे भीख को हाथ फैलाए बच्चे,
गरीबी में कितना सताती ये रोटी।

थके पाँव लेकर कभी घर जो लौटा,
सभी दर्द दिल के भुलाती ये रोटी।

कड़ी धूप में जब कमाते हैं दिन भर,
तभी घर गरीबों के आती ये रोटी।

बड़ी तब अमीरी से लगती गरीबी,
मुझे जब मेरी माँ खिलाती ये रोटी।

- विमल शर्मा'विमल'

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

खूब

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Aa Ka Ek Katu Satya.. !

विमल शर्मा 'विमल'3 years ago

हृदयतल से अमित आभार आपका

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत... खूब...।

विमल शर्मा 'विमल'3 years ago

हृदयतल से अमित आभार आपका

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

विमल शर्मा 'विमल'3 years ago

हृदयतल से अमित आभार आपका

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