कवितागजल
प्रेम तुम इतना लुटाना छोड़ दो।
स्वप्न में आकर सताना छोड़ दो।
एक तो घायल तुम्हें हूँ देखकर,
और उस पर मुस्कुराना छोड़ दो।
बिजलियाँ दिल पर गिराते हैं नयन,
लाज से इनको झुकाना छोड़ दो।
हैं मुझे पागल बनाती पायलें,
इस तरह इनको बजाना छोड़ दो।
केश छिटके चूमते हैं गाल को,
तर्जनी इन पर फिराना छोड़ दो।
छल रही है प्रिय मुझे यह लालिमा,
नित अधर लाली लगाना छोड़ दो।
-विमल शर्मा'विमल'
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