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पड़ौसी पौधे - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

पड़ौसी पौधे

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"पड़ौसी पौधे"

" मैं रोज़ ये गिलोय की बेल कपूर सा के मनी प्लांट पर चढ़ा देता हूँ।कोई फ़िर इसे नीचे गिरा देता है,पनप ही नहीं पाती।"तिवारी जी ज़रा जोर से बोलते हैं। बगीचे में पानी देते कपूर सा ने मुँह फेर कर जवाब दिया, " हमने तो बमुश्किल चुरा कर लगाया कि घर में मनी आने लगे। और लोग पता नहीं किस ज़माने की जड़ी बूटियाँ लगा देते हैं। ऐसे बुरा चाहने वाले पड़ोसी नहीं देखे हमनें ।"
तभी तीसरे घर वाले व्यास सर बीच बचाव करने आ गए, " अरे भई, पौधे सभी शुभ होते हैं। गिलोय तो औषधि में काम आता है। ये इतनी नाज़ुक सी बेल है। इससे मनीप्लांट का कुछ नहीं बिगड़ा। हाँ गिलोय को थोड़ा सहारा मिल जाता है बस। देखो दोनों साथ में अच्छे से ही बढ़ रहे हैं।अरे वैसे भी ये पेड़ पौधे हमारा जीवन है। पास पास रहने वालों को क्यूँ जुदा करें भला। इंसान भी अकेले में ऊब जाता है। ये आप दोनों से ज़्यादा कौन समझता है।"
कपूर सा सोचने लगे, "उस दिन मेरी पत्नी को तिवारी का बेटा समय पर अस्पताल नहीं ले जाता तो,,,,।"
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Bnl Das

Bnl Das 3 years ago

सहारे की जरूरत सबको है इंसान हो या पेड़-पौधे। गिलोय के पौधे अगर मनीप्लांट से मिलकर साथ बढ़ें तो दोनों में बृद्धि अच्छी होगी क्योंकि दोंनो साथ हैं। भावनात्मक अच्छी लघु कथा ।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण

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