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वक्त से तकरार - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

वक्त से तकरार

  • 527
  • 5 Min Read

वक्त से तकरार

आज वक्त के साथ,मेरी हुई तकरार,
अच्छे वक़्त का, करवाता इंतज़ार।
ठहरता नहीं कुछ पल मेरे पास,
कि रेत -सा फिसल जाता हर बार।।

बुरे वक़्त में धीमी रफ्तार,
काटे नहीं कटती काली रात।
जख्म दे जाती है हर बार,
चुभती जीवन भर बनकर बुरी याद।।

खुशी के क्षण केवल कुछ पल के,
बुरे वक्त ना जल्द गुजरते।
क्यों लेते तुम हर वक़्त इंतिहान?
मिलता क्या तुम्हें परिणाम?

क्यों करती तू मुझसे शिकायत?
ना करता मैं कभी नाजायज।
थोड़ा करो वक़्त का इंतजार,
हर सवाल का वक़्त ही जवाब।।

देता सबको मैं वक़्त सामान,
नहीं करता कभी पक्ष -पात।
भर जाते जख्म वक़्त गुजरने के साथ,
बच जाती है केवल कुछ याद।।

सिखाता मैं जीवन का पाठ,
ना करता कभी किसी का इंतजार।
चलता रहता मैं निरंतर,
ना किसी में करता कोई अंतर।।

जो समझ जाते हैं मेरी कीमत,
संवार लेते हैं अपना जीवन।
जो ना कर पाते मेरी पहचान,
लगाते रहते हैं मुझ पर इल्ज़ाम।।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 4 years ago

बढ़िया

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

वक्त का चेहरा हमारी गफलत के लंबे कालों से ढका होता है और सिर का पिछला भाग हमारी समझ की तरह गंजा. सामने से उसे पहचान नहीं पाते और फिर हाथ से फिसल जाता है बंद मुठ्ठी से रेत सा, और हम खाली हाथ मलते रह जाते हैं

Swati Sourabh4 years ago

वाह बिल्कुल सही कहा आपने सर ?

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

सुंदर

Swati Sourabh4 years ago

Thank you ?

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