कवितालयबद्ध कविता
क्या लिखूं
सोचती हूं क्या लिखूं
लिख दूं रोज की पाती
या दर्द भरी कोई कहानी
सोचती हूं क्या लिखूं ।
जीवन एक फसाना है
आना और जाना है
संघर्ष करते हुए
हंसते हंसते जीवन बिताना है ।
सोचती हूं क्या लिखूं
लिख दूं रोज की पाती ।
आदमी का जीवन तो
यादों का पिटारा है
पिटारे को खोलो तो
सुख दुख हमारा है ।
सोचती हूं क्या लिखूं
लिख दूं रोज की पाती ।
ज़िन्दगी का मोल समझो तो
जीवन से प्यार हो जाएगा
कितने भी आंधी तूफान आये
सागर को किनारा मिल जाएगा ।
सोचती हूं क्या लिखूं
लिख दूं रोज की पाती ।
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
स्वरचित एवं मौलिक