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सूर्योपासना का अनुपम पर्व: छठ महापर्व
कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ महापर्व जो मुख्यतः प्रकृति की विशेषता को बताने वाला, साक्षात् भगवान रूपी प्रकृति की आराधना करने वाला अनुपम महापर्व है। मूर्ति पूजा से इतर ये पर्व बहुत ही अलग और विशेष महत्व रखता है। छठ पर्व में सूर्य,उषा, जल ,वायु, तथा सूर्य की बहन के रूप में छठी मैया की पूजा की जाती है। ये पर्व मुख्यत: बिहार राज्य में मनाया जाता है लेकिन धीरे- धीरे ये पर्व अब भारत के साथ साथ विदेशों में भी मनाया जाने लगा है।
चार दिनों तक चलने वाला ये अनुष्ठान पृथ्वी पर जीवन देने वाले देवताओं को धन्यवाद और आशीर्वाद देने का अनुरोध करता है। हर त्योहार से अलग इस त्योहार की कई विशेषताएं हैं जो इस महापर्व को मानने हेतु सबको प्रेरित करती है। छठ व्रत महिला, पुरुष दोनों ही करते हैं क्योंकि ये लिंग विशिष्ट त्योहार नहीं है। भारत पुरुष प्रधान देश है जहां ज्यादातर त्योहार या व्रत पुरुष वर्ग के लिए किए जाते हैं लेकिन छठ महापर्व वो त्योहार है जिसमें कोई भेद भाव नहीं है। इस त्योहार के गीत बहुत ही सुन्दर और प्रेरक होते हैं। इसके एक गीत के ही बोल में बेटी को छठी मैया द्वारा मांगा जाता है ( गीत -रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला……)। जो कि शायद ये एक मात्र त्योहार है जिसमें बेटी मांगी जाती है। इस त्योहार में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। अमीर गरीब सभी इस त्योहार को कर सकें इसलिए इस त्योहार में मौसमी फलों का विशेष महत्व होता है जिसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इस त्योहार का प्रसाद जिस घर में भी पूजा ना हुई हो उस हर घर में बांटी जाती है। मतलब खुशियां सबके साथ बांटी जाएं।
चार दिन के इस अनुष्ठान में पहले दिन की शुरुआत नहाए खाए से शुरू होती है। जिसमें व्रती सेंधा नमक और घी में बनी कद्दू की सब्जी और अरवा चावल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं। दूसरे दिन को खरना कहते हैं जिसमें व्रती दिन भर भूखी रह कर नए चावल का खीर बनाकर शाम में पूजा के बाद ग्रहण करती हैं। ये खीर नए ईंट का चूल्हा बनाकर और आम की लकड़ी जलाकर ही बनाया जाता है। ये प्रसाद वितरण भी किया जाता है। तीसरे दिन व्रती शाम में पोखर, नदी या तालाब में डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है उम्मीद की किरण कि कल फिर नई शुरुआत होगी। जो इस त्योहार के महत्व को और बढ़ा देता है। और चौथे दिन उगते सूर्य को दूध से अर्ध्य देकर ये अनुष्ठान व्रती पूरा करते हैं। पूजा में पवित्रता का मुख्य ध्यान दिया जाता है।
पूरा भक्ति गीतों से भक्तिमय माहौल बना रहता है। व्रती के अर्ध्य देने हेतु जाने वाले रास्ते को सभी मिलकर धोते हैं, रास्ते को सकते हैं। व्रती को नंगे पैर ही जाना होता है। ये त्योहार सबको साथ लेकर चलने, मिलजुल कर रहने, साफ - सफाई का ध्यान रखने, प्रकृति का महत्व समझने से लेकर कई सीख देता है। ये त्योहार हर जगह मनाई जानी चाहिए। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्ष भर स्वस्थ, सुखी और निरोगी होने की कामना करते हैं।
धन्यवाद्
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलक
भोजपुर, बिहार