कविताअन्य
वो सजने संवरने को श्रृंगार ढूंढती है,
गुस्से में तेरे,वो प्यार ढूँढती है।
लगाकर बिंदिया माथे पर अपने,
काजल में तुझे बार-2 ढूंढती है।
वो कहते हैं कि नारी का श्रृंगार,
सिंदूर, बिंदिया,पायल,बिछिया
से होता है।-2
वो गहनों में अपने सबसे कीमती गहना-2
चेहरे के अपनी मुस्कान ढूंढती है।
पहनकर चुड़ियाँ हाथों में अपने,
खनखन में खुशियों की बहार ढूंढती है।
वो कहते है पति के प्रेम से,
संवर जाती है नारी -2,
पति कि नज़रो में प्रेम और सम्मान ढूँढती है।
वो चेहरे के अपनी मुस्कान ढूंढती है।
पायल की झनकार में अपने,
संगीत बेशुमार ढूँढती है।
वो कहते हैं कि साथ निभाएँगे उम्र भर,
खोई हुई उन कसमों को, शादी की उन रस्मों को।
वादे करने वाले वो हाथ ढूंढती है।
वो चेहरे के अपनी मुस्कान ढूंढती है।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा