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बच्चे मन के सच्चे - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बच्चे मन के सच्चे

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  • 4 Min Read

बच्चे मन के सच्चे

बच्चे होते हैं मन के सच्चे
छल कपट से दूर ये रहते
सीखो इनसे बनना अच्छे

भेदभाव कभी नहीं करते
सब अच्छा,सब हैं अच्छे
समभावना सदा ये रखते

लोभ मोह भी नहीं जानते
जो देखते हैं वही बखानते
सभी को अपना ही मानते

सच कबूलते एकदम सही
पापा ने कहा वे घर में नहीं
हाँ है न,आप ले जाओ दही

कुछ पलों में बैर भूल जाते
जो मारते उसी को सहलाते
पापी नहीं,बुरी पाप की बातें

जहाँ जाते,वहीं के हो जाते
छोटे बड़े का भेद ये मिटाते
भूल सब बातें हँसते हँसाते

अपने पराए भी नहीं जानते
जो मिले उनको गले लगाते
विश्वबंधुता का ये पाठ पढ़ाते

कुछ भी किसीसे नहीं छुपाते
अपनी चीज़े सभी को लुटाते
दरियादिली सबक हैं सिखाते
सरला मेहता

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Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 3 years ago

बहुतअच्छा है

Anjani Tripathi

Anjani Tripathi 3 years ago

बहुत सुंदर

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

विलक्षण

वो चांद आज आना
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