Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मेरे जीवन की चाह - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मेरे जीवन की चाह

  • 275
  • 5 Min Read

मेरे जीवन की चाह

पैर हो जमीं पर,पर छू लूं आसमां,
अपनी कलम से लिखूं अपना कारवां।
सितारों की जहां में हो मेरा भी नाम
भीड़ से अलग हो मेरी पहचान।

सफर हो मुश्किलें तो करूं सामना,
हौसलों से हमेशा भरूं मैं उड़ान।
नदी की धारा सी निरंतर बढूं मैं,
आए जो बाधाएं तो भी डटकर चलूं मैं ।

पर्वत सी अटल और निश्चल रहूं मैं,
आंधी तूफानों से निर्भीक लड़ूं मैं।
सूर्य सा फैलाऊं मैं अपना प्रकाश,
चन्द्रमा सी शीतलता भी हो मेरे पास।

चींटियों की तरह मै चढ़ूं सौ बार,
मानूं ना हार जो गिरूं बार बार।
जाए ना द्वार से भिक्षुक कोई भूखा,
मेहमानों को दूं हमेशा स्थान मैं ऊंचा।

खुशियां हो जीवन में पर गम भी हो साथ,
समझ सकूं उनका दर्द जो बांटे मेरे साथ।
मिले जो सफलता पर हो ना अभिमान,
स्वाभिमानी बनूं, पर ना करूं अपमान।

तोडूं ना किसी की खुशियों की कड़ी मैं,
बनूं मैं सहारा किसी की दुःख की घड़ी में।
बस मेरे जीवन की इतनी सी चाह,
मेरा जीवन बने प्रेरणा मैं रहूं या ना।

लेखिका:-स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक

logo.jpeg
user-image
Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 4 years ago

सुदंर

Swati Sourabh4 years ago

शुक्रिया मैम

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

चैतन्यपूर्ण

Swati Sourabh4 years ago

शुक्रिया सर

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg