कवितालयबद्ध कविता
मेरे जीवन की चाह
पैर हो जमीं पर,पर छू लूं आसमां,
अपनी कलम से लिखूं अपना कारवां।
सितारों की जहां में हो मेरा भी नाम
भीड़ से अलग हो मेरी पहचान।
सफर हो मुश्किलें तो करूं सामना,
हौसलों से हमेशा भरूं मैं उड़ान।
नदी की धारा सी निरंतर बढूं मैं,
आए जो बाधाएं तो भी डटकर चलूं मैं ।
पर्वत सी अटल और निश्चल रहूं मैं,
आंधी तूफानों से निर्भीक लड़ूं मैं।
सूर्य सा फैलाऊं मैं अपना प्रकाश,
चन्द्रमा सी शीतलता भी हो मेरे पास।
चींटियों की तरह मै चढ़ूं सौ बार,
मानूं ना हार जो गिरूं बार बार।
जाए ना द्वार से भिक्षुक कोई भूखा,
मेहमानों को दूं हमेशा स्थान मैं ऊंचा।
खुशियां हो जीवन में पर गम भी हो साथ,
समझ सकूं उनका दर्द जो बांटे मेरे साथ।
मिले जो सफलता पर हो ना अभिमान,
स्वाभिमानी बनूं, पर ना करूं अपमान।
तोडूं ना किसी की खुशियों की कड़ी मैं,
बनूं मैं सहारा किसी की दुःख की घड़ी में।
बस मेरे जीवन की इतनी सी चाह,
मेरा जीवन बने प्रेरणा मैं रहूं या ना।
लेखिका:-स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक