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द स्टोरी ऑफ माई थर्ड बर्थ पार्ट १ - SHAKTI RAO MANI (Sahitya Arpan)

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द स्टोरी ऑफ माई थर्ड बर्थ पार्ट १

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  • 34 Min Read

ये कहानी तीसरे जन्म से शुरू होती है इससे पहले के दो जनम थे याद नही पर जब विचार करती हूँ तो आंखें चोथे वर्ष में खुलती है शायद यही मेरा पहला जन्म है जहां माथे पर तिलक लगाए सब घर घुमा करती मेरी प्रवृति चंचल थी मैं एक पुजारी के घर पैदा हुई थी मैं एक अकेली पुत्री थी समय के साथ साहूकारों के साथ काम करना जिससे घर खर्च के लिए मेरी तरफ से भी सहयोग हो जाता था,मेरी ईश्वर से प्रार्थना थी कि अगर मेरा विवाह हो तो मेरी ओलाद मेरे जैसा जीवन ना जिए उम्र 23 की होने वाली थी मेरे पिताजी मेरे लिए वर तलाश कर रहे थे , मैं विष्णु भक्त यही मांगती की आने वाला समय अच्छा हो।
रोज की तरह मैं मंदिर गई मैं प्रार्थना में थी कि एक व्यक्ति जिसने काफी अच्छे कपडे पहने थे और साथ में नोकर थे उसका लगातार देखना अजीब था, मैं घर आयी पिता जी ने बताया की जब वह गांव में कुंडली निर्माण के लिए गए थे तो उन्हें पता चला कि गांव में राजसत्ता के लोग भ्रमण कर रहे है शायद यह गांव की आर्थिक मदद कर सके ,पिता जी ने कहा देवांगीनी तुम्हे क्या लगता है क्या उनके भ्रमण से कुछ फायदा हो पाएगा?
नहीं वह व्यक्ति मैंने आज मंदिर में देखा उसके स्वभाव से तो वह उच्च अधिकारी लग रहा था परंतु वो योग्य नहीं की मदद कर पाए।
पंडित जी विचार करने लगे …………?
कुछ दिन बाद जब पंडित जी पूजा कर घर वापस आ रहे थे तब उस राजाधिकारी ने उन्हें रोका ओर कहा -
मेरा नाम रामेश्वरम है और मैं इस गांव का निरीक्षण करने आया हूं और मदद भी, मैं देख रहा हूं कि यह सिर्फ एक दो पंडित आते है परंतु ठहरता कोई नहीं है क्या इसका अर्थ है कि मन्दिर का कोई निजी पंडित नहीं है ?
मेरे पिता जी ने कहा अगर कोई निजी रूप से रहने लगा तो क्या वह अपने घर का खर्च उठा लेगा ?
रामेश्वरम ने कहा अगर आप रहे और घर खर्च मै दू या दान से निकाल लिया जाए तब ?
पिता जी ने कहा संभव है परंतु मुझे अपनी पुत्री का विवाह करना है जिसके चलते खर्च ज्यादा है
रामेश्वरम ने बिना देर लगाए कहा कि गांव में भैरवी पूजा का होना बहुत जरूरी होता है एक अनुष्ठान जरूरी है मैंने आपकी पुत्री को पुजारण के रूप में देखा है वो सक्षम है इस अनुष्ठान के लिए।
पिता जी ने कहा यह तो विष्णु मंदिर है ?
रामेश्वरम ने कहा मैं यह भैरवी की स्थापना करुंगा। विष्णु जी से अलग ।
शाम को जब पिता जी घर आए तो यह बाते बताई मैंने हा कह दिया क्यूंकि पिता जी बहुत मेहनत किया करते थे मैं उनको थोड़ा आराम देना चाहती थी ।
उसकी निगाहें तीन दिन के अनुष्ठान में मुझ पर ही रही
वो व्यक्ति जिसे में जानती नहीं थी उसने यह कहा कि पिता जी मरवा दिए जाए तो ?
मेरे साथ जबरदस्ती संभोग कर मुझे तीन दिन तक वहीं रखा गांव में यह बात फैल चुकी थी पिता जी को सब अलग अलग सलाह दिए जा रहे थे मेरा मन अब मरने का था परंतु ऐसा करती तो पिता जी का क्या होता मां तो मर ही जाती ।महीने बीते में सदमे में घर में ही रहती सारी चंचलता खतम थी ।
पिता जी से कोई भी अब कुंडली निर्माण के लिए नहीं पूछता सब खत्म होता जा रहा था,मेरे पिता जी अन्य पंडितो के साथ भी रहा करते थे उनमें से एक ने प्रस्ताव रखा कि हम आपकी पुत्री का विवाह करवा सकते है,एक व्यापारी से जिसे अपने व्यापार के लिए कुशल व्यक्ति की आवश्यकता है और आपकी पुत्री ज्ञानवान है मेरे पिता जी ने उस व्यापारी को निमंत्रण कर विवाह का प्रस्ताव रखा , और मैंने सब कुछ यथा कथित बताई और कहा शायद मैं गर्भवती हूं।
उस व्यापारी का मुंह निराशा से भरा था ओर वो उठ के चला गया,मैंने सोचा क्यूं ही करेगा कोई विवाह,परंतु उसने विवाह के लिए हा कहा?
मुझे यकीन नहीं हुआ परंतु वो मुझे अपनाने की बात कर रहा था,विवाह का समय कुछ महीने बाद का रखा तभी एक दिन वो राजसत्ता का अधिकारी हमारे घर आकर हमसे विवाह का प्रस्ताव रख हमारा नाम पूछने लगा मैं उसे घुर रही थी मैने मना कर दिया ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती तुम दुबारा पूछने आए हो इससे पहले ही मेरा रिश्ता हो चुका है और ऐसे व्यक्ति से कोन विवाह करेगा जो जिस्मो को बदलता है,मर जाऊंगी पर रामेश्वरम से विवाह नहीं करूंगी।
वो व्यक्ति मुझे देखता रहा और चला गया मैं कुछ समझी नहीं और उसे जाने को कहा।
मेरा विवाह अरविंद गोस्वामी व्यापारी से हो गया वो नेक दिल का था उसने कहा मुझे तुम्हारे इस बच्चे से कोई दिक्कत नहीं बस तुम साथ रहकर मेरा व्यापार संभालो ।
मैंने कहा हा ठीक है, दिन अब अच्छे कट रहे थे उनसे शायद प्रेम नहीं था परंतु वो एक काबिल व्यक्ति थे मेरी पुत्री चार वर्ष की होने वाली थी उसका नाम जयरानी रखा,रामेश्वरम का उस गांव में भी बोल बाला था वह अब उच्च ज्ञानी भी बन गया था जब वह मेरे से आखरी बार मिला तो शायद विचारो ओर बुद्धि से बदल चुका था पर मेरा फैसला कभी नहीं बदला वो पछतावे में जी रहा था ।
कुछ दिन बाद खबर आयी की मेरे पति की किसी ने चाकू मार के हत्या कर दी है मुझे बहुत गुस्सा आया, हे विष्णु क्या मै सुख भोगने योग्य नहीं। मैं इस दुख में जी ही रही थी कि एक देर रात को मेरी कुटिया पर कोई आता दिखाई दिया दूसरी तरफ मेरी जायरानी सो रही थी।
वो रामेश्वरम था उसने बताया कि उसके पति को उसने ही मारा, मैं सदमे से चुप रही वो कहता गया देवांगीनी तुम्हारी वजह से मैं नश्वर जीवन से बाहर आया था जो कि बहुत अच्छा था परंतु में फिर नश्वर नहीं बनना चाहता तुम हमारी शायद ना हो और आज हम किसी का होने भी नहीं देंगे।
मुझे मारते वक़्त उसके हाथ कांप गए वो बाहर गए एक नौकर अंदर आया उसने गले को कश लिया मै रामेश्वरम को देख रही थी आंखे फिर बंद ही हो गई।।
आंखे खुली तो एक नए ही रूप में इस बार मेरा जन्म व्यापारी के घर हुआ मेरा नाम लक्ष्मी था यह शायद मेरा दूसरा जन्म था पास के नगर से मुझे एक रिश्ता आया इस व्यक्ति को मैं जानती थी यह एक छोटा व्यापारी था जो हमसे ही व्यापार करता था इसका नाम था वैभव,परंतु मुझे अभी विवाह नहीं करना था या फिर मेरे मन में कोई और ही था वो गुनी ज्ञानी व्यापार में अव्वल था बलराम उसका हमारे साथ व्यापार में साझा था वो बहुत ही शांत और चालाक स्वभाव का था मुझे वो पसंद था व्यापार के चलते उससे मिलना हुआ करता था, मानो भगवान ने मेरे मन की बात सुन ली हो पिता जी से कहने से पहले उसने मुझसे मिलने पर कहा कि लक्ष्मी शायद हम बहुत करीब है तो क्यूं न व्यापार को एक कर के मतलब आप राजी है तो हम आपसे विवाह करना चाहते है।
मैं मन ही मन खुश थी मैंने कहा आप पिता जी से बात करे ओर चली गई।पिता जी को कोई आपत्ती नहीं हुई और बलराम से विवाह करवा दिया बलराम को मैंने अपना सारा व्यापार सौंप दिया हमारा व्यापार कच्चे तेल का था ,व्यापार से दूर हट में अब भविष्य में बच्चो की सोच रही थी परंतु एक दिन अचानक बलराम कुछ दिनों से अजीब बातें कर रहे थे वो हमेशा दूसरी कन्याओं से संबंध का मन जता रहे थे जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।
मैंने एक दिन उनसे गुस्से में पूछा आपको क्या चाहिए उन्होंने एक सांस में कहा तुमसे छुटकारा मै तुमसे प्रेम नहीं करता तुम्हारे लिए वैभव ही ठीक था,मुझे व्यापार से प्रेम है ।
मैंने कहा क्या कह रहे हो, उन्हें देखती रही लालच दिख रही थी एक धोखा भी एक छल भी जिसका सार भी व्यापार सहारा भी व्यापार,मेरा सार बहुत है लेकिन मेरा सहारा ख़तम हो गया था उसी दिन।में घर वापस आयी तो पिता नहीं रहे यह बात भी आज ही पता चली ।
एक दिन वैभव से मिली वो उस वक़्त मुसीबत में था मुझसे मदद मांग रहा था परंतु मैं तो खुद बेजान हो चली थी वैभव ने पहले मेरी बात सुनी उसे बिल्कुल अचंभा नहीं हुआ कि बलराम ने धोखा दिया, और वैभव भी कुछ ओर बाते सुना कर चला गया।
नदी के किनारे जहा बचपन में रोज पिता जी शेर करवाते कभी नहलाया भी करते पिता कि उंगलियों को पकड़ कर जब डुबकी लगाया करती ओर छपक उंगली मुझे ऊपर खींच लेती पर इस बार जब डुबकी लगाई तो वो सहारा नहीं मिला मैं फिर कभी बाहर ही नहीं आ पाई….


मेरा तीसरा जन्म २००२ को मेरा चोथा जन्मदिन…………….

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Swati Sourabh

Swati Sourabh 3 years ago

वैसे रचना अच्छी है

Swati Sourabh

Swati Sourabh 3 years ago

हिन्दी रचना पर English title मुझे कुछ ठीक नहीं लगता

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

कहानी अच्छी है और अच्छी हो सकती थी, अभी इस रचना को पकाने की जरुरत है

दादी की परी
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