कहानीप्रेरणादायकलघुकथा
कहते हैं, सागर-मंथन से जिस प्रकार अमृत के साथ मदिरा प्रकट हुई,
उसी प्रकार लक्ष्मी के साथ-साथ दरिद्रता भी प्रकट हुई. लक्ष्मी ने नारायण का वरण किया तो दरिद्रता भी अपने बहन-बहनोई के पीछे-पीछे उनके धाम की ओर चल पडी़. अब साली को मना कैसे करते ? इस संबंध की जटिलता के समक्ष भगवान भी विवश हो गये.
एक दिन एक और समस्या ने हरि को और भी अधिक धर्मसंकट में डाल दिया. दरिद्रता भगवान से पूछने लगी, " आपको कौन अधिक अच्छी लगती है, मैं या मेरी बहन लक्ष्मी ? "
भक्त संकट में भगवान को पुकारता है. अब हरि के भगवान तो शिव हैं. " अब वे तो भंगपान करके समाधिस्थ होंगे. उसमें व्यवधान उत्पन्न करना उचित नहीं. ", यह सोचकर प्रभु चिंतन करने लगे. सहसा चिंता की घटाओं को चीरकर एक सूर्यरश्मि सी युक्ति मन के आकाश को आलोकित करके मुखमंडल पर मधुर स्मित ले आई.
प्रभु बोले, " देखो, यह निर्णय करने के लिए मुझे तुम दोनों को एक कसौटी पर परखना पडे़गा. दरिद्रता, तुम मेरे पास खडी़ रहो और लक्ष्मी, तुम वहाँ दूर उस पेड़ के पास. ".
लक्ष्मी भी नारीसुलभ ईर्ष्या से बच न सकी. आखिर इसके मूल में भी दांपत्य-प्रेम का एकाधिकार ही होता है जिसे वह किसी के साथ भी नहीं बाँट सकती. क्रोध से थर-थर काँपती लक्ष्मी दरिद्रता को कोसती हुई उस वृक्ष के पास जाकर खडी़ हो गयी.
अब प्रभु ने दरिद्रता को दूर जाने और लक्ष्मी को पास आने का आदेश दिया. दरिद्रता एक फूहड़ सी चाल से दूर जाने लगी और लक्ष्मी एक कुलीन कुलवधू की भाँति नतमस्तक होकर सलज्ज, मंद गति से प्रभु की ओर बढ़ने लगी. तभी प्रभु ने एक विलक्षण सारगर्भित निर्णय सुना दिया,
" सुनो, दरिद्रता दूर जाती हुई अच्छी लगती है और लक्ष्मी पास आती हुई. अब मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों बस ऐसा ही करती रहो. "
इस तरह भगवान ने साँप भी मार दिया और लाठी नहीं टूटने दी.
अब इस कथा की तात्विक व्याख्या प्रस्तुत करता हूँ. हम सभी का कारण-शरीर, आत्मा भी परमात्मा का ही अंश है. वह भी हमें दरिद्रता को दूर भेजने और लक्ष्मी को पास बुलाने की प्रेरणा देती है.
ये दोनों भी तन, मन, धन, इन तीनों रूप में होती हैं
धनलक्ष्मी शुभमार्ग से आये और शुभमार्ग से ही जाये तो दरिद्रता को दूर करके समृद्धि-गंगा बनकर शाश्वत रूप से घर-आँगन को चिरसिंचित करती है.
तन के स्तर पर आरोग्यलक्ष्मी को प्रसन्न रखने के लिए तन के साथ-साथ तन को रचने वाले पंचतत्व- गगन,पवन,अनल,जल,भूतल इन तीनों को भी शुद्ध रखें.
मन के स्तर पर भी नकारात्मक चिंतन, द्वेष, घृणा, क्रोध,उन्माद, प्रतिशोध, असत्य, कृपणता, लोलुपता और अहंकार आदि वैचारिक दरिद्रता के अंधकार को दूर करने के लिए चैतन्य दीप से आलोकित करके लक्ष्मी को प्रसन्न करें, कुछ इस प्रकार,
" साईं, इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय "
द्वारा: सुधीर अधीर