कवितालयबद्ध कविता
*_~ |ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है | ~_*
जन्म लेते ही न जाने कितने रिश्तो में बंध जाती है ...
एक बेटी बन परिवार को खुशियों से महकाती है ...
बड़े भाई बहन की मानो खुशियो की चाबी बन ...
अपनी शरारतों से , नादानियों से सारे घर को चहकाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
अपने भाई बहनों से मीठी सी नोक झोंक कर ...
हर पल उन्हें अपने प्यार का एहसास दिलाती है ...
अपने दुलारे भाइयों की दुलारी बहन बन कर ...
रक्षा बंधन पे उनसे अपनी रक्षा का अधिकार मांगती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
कभी मौसी , कभी बुआ , बनकर ...
सभी पर अपनी करुणा लुटाती है ...
अपने गोद मे भांजे भांजियों को ले कर ...
माँ जैसी मीठी सी लोरियां सुनाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
एक पुत्री के रूप में अपने माता पिता के सम्मान के लिए ...
उनका सर उंचा रखने को सदा सर्वदा तत्पर रहती है ...
आ न जाए कभी कोई आंच अपने परिवार पर ...
परिवार की रक्षा के लिए "कालरात्रि" बन जाती है...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
पत्नी के रूप में नारी - पति के लिए ...
अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है ...
गर आ जाए सुखी संसार मे कोई मुश्किलें ...
"गौरा" बन चट्टान की तरह सदैव अडिग रहती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
परिवार के सभी रिश्तो के साथ साथ ...
देश के लिए कभी लक्ष्मीबाई बन जाती है ...
कल्पना चावला बन देश का नाम रौशन कराती है ...
ये आज की नारी है साहब कुछ भी कर जाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
नारी है अष्टभुजा धारी , एक तरफ मायका ...
दूजे तरफ में अपना ससुराल सम्भालती है ...
कभी किसी के मान सम्मान को ठेस ना पहुचें ...
इसिलए कई बार घूंट घूंट के जिया करती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
परिवार के सभी रिश्तो के साथ साथ ...
देश के लिए कभी लक्ष्मीबाई बन जाती है ...
कल्पना चावला बन देश का नाम रौशन कराती है ...
ये आज की नारी है साहब कुछ भी कर जाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
जब अपने ही लगाए लाँछन दुनिया की बातों में आ कर ...
अपने आप को शायद अकेला पाने लग जाती है ...
पर हौसला बुलंद रख के अपने इज़्ज़त पर जो उठायें ...
"चंडी"बन दुष्ट को दृष्टता की सजा दिलवाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
उठे जो उंगली नारी की इज़्ज़त पर ...
तो दुनिया भर में कोहराम मचा देती है ...
हिम्मत है किसी की जो छेड़े किसी नारी को ...
"महाकाली"बन स्वर्ग के दर्शन करा जाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
कभी तो गुस्से में अच्छा बुरा न सोच काफी कुछ कर जाती है ...
यहां का गुस्सा वाह किसी और पर निकाल आती है ...
मानो जैसे कोई बन जाए अपने २ बहुओं की सांस ...
जो अपनी बहू पर सारा दिन हुकुम चलाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
बस सदा त्याग समर्पण करती आई है ...
बेशुमार प्यार के बदले कुछ नही माँगती ...
कभी जो रहे उदास वही किसी कारण वश ...
बस प्यार के दो बोल से ही मुस्कुरा जाती हैं ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
तू बड़ी भोली है, तू ममता की मूरत है ...
कोई तुझ पर कितना भी करे जुल्म ...
उनके सिर्फ एक सॉरी से तू ...
तू मोम की तरह पिघल जाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
तू है धनदात्री , तू है विधादात्री ...
तू है सृष्टि जननी , तू है अन्नपूर्णा ...
तू है ममता मयी माँ , तू है शक्ति दुर्गा ...
एक हो कर अनेकों नामो से जानी जाती है ...
*_ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है ..._*
*_मौलिक एवं स्वरचित ..._*
*_ममता गुप्ता ✍🏻_*
*_अलवर , राजस्थान_*