कविताअतुकांत कविता
तुम कभी बैठो मेरे पास,
मुझे अच्छा लगता है,
तुम्हारा बैठ कर
अपलक निहारना,
मुझे अच्छा लगता है,
तुम छूते हो जब हाथ,
मुझे अच्छा लगता है,
तुम्हारे उन हाथों का आलिंगन,
मुझे अच्छा लगता है,
तुम चूमते हो जब मेरा हाथ
मुझे अच्छा लगता है,
मै करती रहूं तुम्हारा इन्तजार
मुझे अच्छा लगता है,
पर तुम समझ ही ना पाये
आजतक मुझे क्या अच्छा
लगता है...