कवितानज़्मगजल
सुनो एक बात कहता हूं ज़रा तुम गौर से सुनना ।
शिकन माथे की ये तेरी, गवारा है नहीं मुझको,
जो बाते दर्द की सादिक, वो सारी मुझको अता कर ।
तेरी खामोशियों से गम की, जो बूंदे टपकती हैं,
पिला दे मुझको किसी रात, उन्हें तू जाम बता कर ।
मलाल हो कोई अब भी, तो मुझसे बेझिझक तू कह,
लबो से गुफ्तगू कर ले, शरम के ताले हटा कर ।
तेरी हर एक अदा मुझको, उसके जैसी मुक़द्दस हैं,
कभी दे दीद-ए-ज़ख्म अपने, तू मुझपे थोड़ा सा हक जता कर ।
सुनो✖️
नहीं...
कहो कोई बात अब तुम तो, मुझे है गौर से सुनना।।