कवितालयबद्ध कविता
यह आदि है या अंत,
जीवन है या है मृत्यु,
धूप है या छाँव,
पतझड़ है या फिर वसंत,
इस निरंतर घूमते से
जीवन-चक्र का
यह आदि है या फिर अंत
हर पल है एक सूक्ष्म बिंदु
हर बिंदु में सिमटा सिंधु
हर बिंदु कडी़ है
अद्भुत जीवन-रेखा की
जो है अनादि, अनवरत और अनंत
पहले मुर्गी या पहले अंडा
समझ नहीं आता यह फंडा
पहले बीज या पहले फल
पहले आज या पहले कल
पहले बेटी या पहले माँ
इन सबके उत्तर कहाँ
ये उत्तर तो छिपे
समय के पास
मगर करें क्या
आज समय ही नहीं
किसी के पास
पहले मृत्यु या पहले जीवन
यह प्रश्न अभी तक है उलझन
भरे समुंदर नदिया को
या नदिया भरे समुंदर
खोज रहे हैं अनंत में
कब से दोनों इसका उत्तर
पहले रात या पहले दिन
अनुत्तरित ना जाने कितने
प्रश्न रहे अनगिन
है अनंत यह प्रश्नमाला
महाकाल के हाथ में
फिर रही क्षणों की माला
हर मनके में सिमटा जीवन
इन मनकों से बनता जीवन
हर लमहे को जीना सीखो
चाहे मीठी हो या फिर कड़वी,
बूँद-बूँद को पीना सीखो
अमृत हो या फिर हलाहल
पियो सरलमन नीलकंठ बन
कण-कण, क्षण-क्षण
नारायण-धाम
हर लमहे में
रमते राम
क्षण-क्षण एक
सत्य का दर्पण
क्षण-क्षण अद्भुत
जीवन-दर्शन
कर्म-पुष्प से
कर लो अर्चन
तजकर अहं
करो वंदन
द्वारा : सुधीर अधीर