कविताअतुकांत कविता
जिन्दगी की राह
हर तरफ धुंध सी छाई क्यों है
नजरें बोझ से पथराई क्यों हैं
समय तो समय से गतिमान है मगर
जिन्दगी एक मोड पर ठहराई क्यों है
क्यों सफर आसान नहीं जिन्दगी का
पता क्यों मालूम नहीं मंजिलों का
दौड सपनों को छू लूं मै मगर
अंधेरों ने राह छुपाई क्यों हैं
सफर की ठोकरों से लहुलुहान है मन
राह की मुश्किलों से परेशान है मन
सोचें भी अगर कि एक कदम और बढ़ाऐं
पांव मे बेडियां पहनाई क्यों हैं