कहानीहॉररप्रेरणादायक
ल्लघुकथा
खारी लेकिन खरी
अप्सरा सी रूपवती रानी हेमकुँअर रजत को पालने में सुला स्वर्ण को चूमकर उठाती है।सोचती है," दोनों कुंवर एक दूजे के प्रतिरूप,फ़र्क है तो मात्र बालों का।होगा भी क्यूँ नहीं स्वर्ण ने सुनहरे केश अपनी माँ सायबा से पाए हैं और रजत के मुझसे श्यामल कुंतल।" सायबा की याद ने हेम की दुखभरी कहानी के पन्ने खोल कर रख दिए।
कैसे खानदानी तेवरों के चलते उसे अपने कॉलेज के साथी पार्थ से बिछड़ना पड़ा। और बन गई राजा करणसिंह के महलों की रानी। उसने तो सपनों में भी नहीं सोचा था कि राजा साहब की रातें सायबा के कोठे पर गुजरती है। सायबा जाते जाते स्वर्ण का उपहार हेम को सौप गई।
हेम कुंवर सोचने लगी " उसके सौंदर्य पर राजा की नज़र ही नहीं गई। सासू माँ सा ऊपर से तानें मारती कि तुम्हें तो अपने पति को बस में करना ही नहीं आया।" हाँ वंश चलाने कुल दीपक रजत उसकी झोली में डाल दिया। अधिक शराब की वज़ह से राजा जी भी चले गए अपनी सायबा के पास।"
स्वर्ण को दूध पिलाते उसकी तन्द्रा टूटी। लोग चाहे विमाता कहे लेकिन उसने दोनों बच्चों में कभी भेदभाव नहीं किया।
समन्दर खारा होते हुए भी खरा होता है। अपने विशाल
ह्रदय में सब कुछ समा लेता है
सरला मेहता