कविताअन्य
हर राह है मुश्किल ,हर मंज़िल है दूर
थकान होती है जल्दी,सपने हो जाते है चूर
सामने जब आती है हार ,तो आता है एक सवाल
सवाल ये, के क्यों कठिन है ज़िंदगी ----
मंज़िल मेरी है ,मेहनत भी मुझे ही करनी है
सपने मेरे है पूरे भी मुझे ही करने है
चाहे कोई साथ दे या न दे ,आगे मुझे ही बढ़ना है
और जब हार का क्षण महसूस हो गलती से
करना है सवाल ये खुदसे ,क्यों कठिन है ज़िंदगी ----
कहाँ था कोई जब मैंने सपना देखा था,
कहाँ साथ था कोई जब पहला कदम बढ़ाया था
फिर भी हर चुनौती को मैंने स्वीकार किया,
और पार किया हर मुश्किल को और बनाया एक काफिला
आज काफिला है ,रास्ते है ,मंज़िल .....ज़रा मुश्किल है
मगर है... यही बहुत है ,और अब सवाल करो खुद से
क्या ये सफर मुश्किल है उस शुरूआती सफर से ।
जब चलना शुरू किया था ।
अब करो सवाल खुद से ,कि कहाँ कठिन है ज़िंदगी ----
जब आप आत्मनिर्भर हो ,आत्मविश्वासी हो ।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा