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शुक्रिया,शुक्रिया, शुक्रिया - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

शुक्रिया,शुक्रिया, शुक्रिया

  • 120
  • 12 Min Read

शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया
नवभारत के कर्णधारों, शुक्रिया
"वंदे भारत" के नाम पर
"वंदे इंडिया" शुरु किया
नवभारत के कर्णधारों, शुक्रिया
शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया

ये भारत और वो इंडिया
एक नहीं बल्कि दो हैं
इन नजरों में भारत की तो
गिनती ही क्या है ?
आसमान में चढी़ निगाहें
धरती से मिलती ही क्या हैं ?

हाँ, इंडिया तो वो है
जो विदेशों में
भारीभरकम पैकेजों पे
रहता है
हाई फाई लोकेशन पे
खडा़ भव्य सा एक भवन
जिसकी कहानी कहता है

पर उस भारत का क्या ?
बूँद-बूँद करके लिखी,
जो कभी किसी को ना दिखी
हर सुबह नयी,
और शाम को
धुँधला गयी,
मनहूस सी उस इबारत का क्या ?

दर-दर यूँ ठोकर खाते
उस भारत का क्या ?
कभी उधर और कभी इधर
यूँ बिखर-बिखर,
यूँ तितर-बितर होकर जाते
उस भारत का क्या ?

कभी जाहिल कभी गँवार,
कभी निठल्ला, कभी गैरजिम्मेदार
कभी साजिश और कभी गद्दार
कामचोर या फिर मक्कार
जाने क्या-क्या इलजाम पाते
उस भारत का क्या ?

रेल की उन पटरियों पर
पडी़ खून से यूँ लथपथ
रोटी की वो दर्द भरी कहानी
टूट पडी़ बनकर कहर,
मनहूस सी उस
सुबह की मुँहजबानी,
जिसमें खोकर रह गई
बस लाश बनकर
कुछ जवानी
उस मौत के समुंदर में
अपना वजू़द खोती हुई
अनगिन मौजों की वो रवानी

हाँ, सड़कों पर खाक छानता,
मंजिल से अनजान सा
टुकड़े-टुकड़े, टूटकर बिखरता
वो दिल हिंदुस्तान का

जिसकी तेज धड़कनों से
कुछ मिलों की कुछ कलों के
चक्के घूमते हैं

जिनके हाथों
ऊँचे-ऊँचे महल बन
आकाश चूमते हैं

जिनके दम पर अर्थतंत्र के
सभी सुनहरे आँकडे़
कामयाबी के नशे में
झूमते हैं

और जिनके नंगे पाँव
सड़कों पर लावारिस
बनकर घूमते है

हाँ, आज जो होकर हताश,
किस्मत के हाथों मोहताज

अपना सिर छिपाने को
एक आशियाने को,
दो वक्त के भरपेट खाने को

हर किसी की
नजर में बेगाने जो
दर्द के कुछ जीते-
जागते तराने वो
कभी-कभी तो लगते हैं,
खुद से भी अनजाने वो

जल जाता उनके लिए भी
एक-आध दिया
उनके लिए भी बज जाती
कुछ तालियाँ, कुछ थालियाँ

हाँ, जिन्होंने इन
महलों के पत्थरों पे
खून-पसीना एक किया,
जिनको इन सब बेरहम,
पत्थरदिल महलों ने
दूध से मक्खी
समझकर फेंक दिया

उन पर भी बरस जाती
कुछ फूलों की पंखुड़ियां
होती उनकी किस्मत में भी
खुशनुमा अहसास समेटे
कुछ घडियाँ

हम सबने
उन सबसे यूँ
ना जाने क्यूँ
मुँह मोड़ लिया

हाँ, जिन्होंने बना
बिछौना धरती को
आसमान को ओढ़ लिया

सड़कों पर और पटरियों पर
अपना दम तोड़ दिया

इस बेरहम सी दुनिया से
यूँ अपना नाता तोड़ लिया

लावारिस सी लाशों की
एक अनंत श्रंखला में
अपना नाम जोड़ लिया

राष्ट्रवाद के ठेकेदारों, शुक्रिया
भारत के नव कर्णधारों, शुक्रिया
शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया

द्वारा : सुधीर अधीर

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब ??

Sudhir Kumar3 years ago

धन्यवाद

Krishna Tawakya Singh3 years ago

धन्यवाद !

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