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बेटी को पराया धन न कहना - Priyanka Tripathi (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बेटी को पराया धन न कहना

  • 257
  • 5 Min Read

स्वरचित मौलिक:# बेटी को पराया धन न कहना

बाबुल के बगिया की चिरैया हूं
एक दिन बिन पंख उड़ जाऊंगी।
बाबुल के घर आंगन को सूना कर
यादों की पोटली संग घर से विदा हो जाऊंगी।
मन व्यथित कर देता ये कैसी रीत जहां की?
बेटी को पराया कर देता ये कैसी प्रीत पिता की?
लाड़ प्यार से पाला पोसा आत्मनिर्भर बनाया
पराया धन कहके पल भर मे पराया कर डाला।
आंखें रोई तो मन भी रोया होगा
मैया कैसे तुमने दिल को समझाया होगा।
मुझे तो प्रथा समझकर निर्वाह दिया
अपनों से पराया करके पराए संग बांध दिया।
बाबा तुम ही बताओ तुम बिन कैसे रह पाऊंगी?
जब क्षण भर को अपनी आंखों से ओझल नही करते थे।
मेरे अरमानों को अब कौन पूरा करेगा?
बेटी को तो अपने घर का मेहमान बना दिया।
बाबा तुम्हारे प्यार को तरसुगी
मैया के आंचल की छांव को तड़पुगी।
बेटी हूं तुम्हारी बस यही चाह है मेरी
बेटी ही कहना न पराया धन कहना कभी।
मन व्यथित कर देता ये कैसी रीत जहां की?
बेटी को पराया कर देता ये कैसी प्रीत पिता की?
बाबुल के बगिया की चिरैया हूं.......

प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण स्रजन..!

Priyanka Tripathi3 years ago

Bahut bahut dhanayavad

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत ही सुंदर

Priyanka Tripathi3 years ago

शुक्रिया आभार

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