कवितानज़्म
एक रोज़ देखा चाँद को,
बड़े ही ध्यान से, ज़रा इत्मिनान से -2
और पूछा उससे कि तुम परेशान नहीं होते।
वो बोला किसलिए??
मैंने कहा सारी रात चंद आशिक निहारते हैं तुम्हें,
बच्चे छोटे, मामा पुकारते हैं तुम्हें ।
पढ़ते है कविता बनाकर तुम पर,
चंद लोग सनम कहकर पुकारते है तुम्हें ।
बताओ भला, क्या खुदका वजूद नहीं
या सनम, मामा, बनना ही है सही ।
चाँद ज़रा सोच में हो गया लीन,
और बोला मुझसे, बात सुन मेरी ,
मैं हूँ श्वेत पर फिर भी दिखता हूँ रंगीन ।
मेरी दुनिया बड़ी है हसीन ।
बनकर चंदा मामा, दिल बच्चों का बहलाता हूँ
लगे जो पंख किसी को प्यार के,
मुहोब्बत बन जाता हूँ, लग जाए चोट
जो किसी के दिल को,तो मरहम बनकर
उसको मैं सनम नज़र आता हूँ ।
कभी पूर्णिमा की रोशनी,
कभी अमावस की काली रात हो जाता हूँ ।
तारों की बहुत भीड़ है मेरे आस-पास,
मगर जो साथ है मैं उन्हीं के पास नज़र आता हूँ ।
(सप्तर्षि)
©भावना सागर बत्रा की कलम से