कहानीप्रेरणादायक
"माँ! दादा जी बदन दर्द से रातभर परेशान रहते हैं, पर न तो पापा रात में दादा जी को देखने जाते हैं न और न ही आप।" दस वर्षीय बेटे ने जैसे ही यह प्रश्न अपनी माँ से किया माँ एक पल के लिए सन्न रह गई। माँ बेटे के प्रश्न का जवाब दे पाने में असमर्थ थी। बेटे को समझाते हुए माँ कहती है, "बेटे! तुम इन सब बातों पर ध्यान मत दो! तुम तो देखते हो न, तुम्हारी माँ घर के काम से दिनभर परेशान रहती है। तू ही बता बेटे, क्या रात में मैं चैन से सो भी नही सकती हूँ? तेरे दादा जी का ख़्याल दिन में तो मैं रखती ही हूँ। समय पर उन्हें खाना, दवा व अन्य ज़रूरत के सामान तो दे ही देती हूँ। अब तू जा! जाकर पढ़ाई कर छोड़ इन बातों को।" बेटे ने नज़र नीचे करके माँ से कहना प्रारम्भ किया, "माँ! कल विद्यालय में शिक्षक जी बता रहें थे कि बड़े बुजुर्गों की देखरेख अच्छे से करना हमारा कर्तव्य है। फिर माँ! आप अपने कर्तव्य का निर्वहन क्यों नहीं कर रही हैं? और पापा भी तो दादा जी से सही से बात तक नही करते हैं। अब मैं न तो पापा से इस विषय में बात करूंगा और न ही आपसे। जब भी दादा जी को किसी चीज़ की ज़रूरत होगी या उनकी तबीयत खराब होगी मैं उनकी मदद करने के लिए उनकी नज़रों के समक्ष खड़ा हो जाऊंगा। और यथासंभव मैं उनकी मदद करूंगा। मैं तो अपने कर्तव्य का निर्वहन अवश्य करूंगा।" माँ और बेटे के बीच हो रहे इस वार्तालाप को सुनकर दरवाजे के बाहर खड़े दादा जी की आँखों से अश्रु की धार बहने लगी। पोते की बातें सुनकर क्षण भर के लिए उन्हें ऐसा लगा कि उनके जीवन का हर दर्द दूर हो गया।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित
गागर में सागर । बहुत ही प्यारी रचना छोटी सी कहानी मगर बहुत कीमती बात इस रचना के माध्यम से एक छोटे बच्चे ने कर्तव्यनिष्ठ बनने की शिक्षा दी है। जो सायद आज हम अपनी निजी कार्यो के कारण बुजुर्गों को समय देना ही भूल गए है। बस उन्हें हमसे सेवा के रूप में दो शब्द प्यार के और थोड़ा समय चाहिए होता है जो शायद आज के इंसान के पास नही है।
बहुत बहुत आभार आपका