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मूक -निमंत्रण - शशि कांत श्रीवास्तव श्रीवास्तव (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मूक -निमंत्रण

  • 199
  • 4 Min Read

मूक -निमंत्रण
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निशा दे रही है मूक -निमंत्रण
निस्तब्धता छा रही चहुँ ओर,
तारे भी थक कर सो रहे हैं,
चाँद भी चला बादलों की ओट,
निशा दे रही है मूक -निमंत्रण |
शबनम के मोती बिखरे हैं,
चम्पा और बेला खिले हुए हैं,
रात की रानी चहक रही है,
वहीं कुमुदनी भी महक रही है,
परिजात की चादर बिछी हुई है,
सुमनों की खुश्बू बिखर रही है,
निशा दे रही है मूक -निमंत्रण |
आ जाओ तुम अब पास मेरे,
आकर के भर लो अंक में अपने,
अधरों का रस पान करो तुम ,
प्यासे मन को तृप्त करो तुम ,
पवित्र प्रेम की बरसात करो तुम,
इस मृतप्राय सदृश्य जीवन में ,
नवजीवन का संचार करो तुम,
रैना भी अब बीत रही है,
निशा दे रही है मूक -निमंत्रण ||

शशि कांत श्रीवास्तव
29-09-2020

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 4 years ago

सुंदर रचना सर जी..!

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